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Rajendra Prasad Patel

Abstract

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Rajendra Prasad Patel

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क्रोध

क्रोध

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क्रोध तो वोध है राह में मौत का ।

और जानो धरा में सठे शौत का।।

पाप है ताप है भाव तो क्रोध का ।

छोड़ दे जोड़ दे शील के शोध का।।


टूटते  छूटते  दोस्त  हैं राह  में ।

फूटते हैं घड़ा क्रोध के चाह में।।

सत्रु वो साख का व्याध है जानिए ।

वो छिपे मार दे मान को मानिए।।


लोभ के लाभ से जन्म पा क्रोध है।

साथ में पा उसे पाल ले शोध है।।

यूॅ॑ जले दीप लौ आग की लौ बुझे ।

रीति के राह में प्रीति है दे मुझे।।


क्रोध से है मिले दर्द तो देंह को ।

साथ में मान लो खो रहे नेह को।।

जाम है एक वो त्याग दें राग से ।

फूल वो है सड़ा फेंक दें बाग से।।


हारता हीर है क्रोध के पाल में ।

क्षोभ हो क्षीर को है फॅ॑से जाल में।।

हो अंधेरा जहां क्रोध जो है डसे ।

जो टले तो पले प्रीति माया बसे।।


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