क्रोध
क्रोध
क्रोध तो वोध है राह में मौत का ।
और जानो धरा में सठे शौत का।।
पाप है ताप है भाव तो क्रोध का ।
छोड़ दे जोड़ दे शील के शोध का।।
टूटते छूटते दोस्त हैं राह में ।
फूटते हैं घड़ा क्रोध के चाह में।।
सत्रु वो साख का व्याध है जानिए ।
वो छिपे मार दे मान को मानिए।।
लोभ के लाभ से जन्म पा क्रोध है।
साथ में पा उसे पाल ले शोध है।।
यूॅ॑ जले दीप लौ आग की लौ बुझे ।
रीति के राह में प्रीति है दे मुझे।।
क्रोध से है मिले दर्द तो देंह को ।
साथ में मान लो खो रहे नेह को।।
जाम है एक वो त्याग दें राग से ।
फूल वो है सड़ा फेंक दें बाग से।।
हारता हीर है क्रोध के पाल में ।
क्षोभ हो क्षीर को है फॅ॑से जाल में।।
हो अंधेरा जहां क्रोध जो है डसे ।
जो टले तो पले प्रीति माया बसे।।
