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Rajendra Prasad Patel

Abstract

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Rajendra Prasad Patel

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वसुंधरा

वसुंधरा

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बृह्म गगन में सुंदर छवि की,

ममतामयि मधु मूरत रवि की,

महिमा मंडित कण कण उर,

आत्मा तू तो है हर कवि की।।


धरा कहूॅ या धरणि वसुंधरा,

धरि धरित्री या महिं मान भरा,

हर अंजन की तू शुभ संगम है,

हर ख्यालों की खलिहान खरा।।


तेरे आंचल में अनुपम जीवन,

सास्वत् उगते अविचल उपवन,

चराचरों की अनुरागी आश्रय,

जन्नत की भी तू चंचल आंगन।।


नत् गगन चूमते पर्वत पथ पर,

निर्मल बहते हैं झर झर निर्झर,

हर पत्थर शिव रूप जहां में,

हे वसुंधरा प्रति पावन पल घर।।


तुझसे तेरे हर बंधन से बंधकर,

गुन गुन गाते हैं वो गीता डटकर,

प्रेमाश्रु प्रवाही मन मंगल मोदी,

हे वसुधैव कुटुम्बी सब नारी नर।।


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