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Rajendra Prasad Patel

Others

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Rajendra Prasad Patel

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मेरी चाह

मेरी चाह

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हे हरि है मेरी चाह पल बदल दें मेरी ।

प्रभु जी पाऊं राह दल बदल दें मेरी।।


जमाने की ज्योति जले ढले रात अब,

आस में तेरी छांह तल बदल दें मेरी।।


मूढ़ हूँ राह गूढ़ है खोजता मैं फिर रहा,

स्वर से निकले आह हल बदल दें मेरी।।


कुछ दे सकूं मैं तुम्हें वह सब तुम्हारी है,

खेलते खाली बांह थल बदल दें मेरी।।


पी रहा हूं मैं जिसे जहर उसमें है घुला,

भरा वह तो अथाह जल बदल दें मेरी।।


टपकता व्यर्थ में टंकी खाली हो रहा,

टोंटी सहित सुराह नल बदल दें मेरी ।।


आती है दुर्गंध मेरे उदर के संध से वो,

घुट रहा निज उनाह मल बदल दें मेरी।।



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