एहसान -तुम्हारा
एहसान -तुम्हारा
कुरेंद रही है मेरे मन को, स्मृतियाँ जो दी थी तुमने।
उन कसमों को क्यों भूल गए, खाई थी जो मिलकर हमने।
रंगो भरी वह मुस्कान तुम्हारी, नैनों से कभी ओझल ना होती।
क्यों रंग चढ़ाया हृदय पर मेरे, तेज धड़कता, अखियाँ रोतीं।
रंग तो एक दिन धुल जाएगा, प्रेम- रंग को कैसे धोऊँ।
करवटें बदलते ही जीवन कटता, बेचैन हुआ मन, कैसे सोऊँ।
प्रेम -भक्ति रंग तुमने देकर, मुझको है जीना सिखलाया।
मीरा भी थी प्रेम-रंग दीवानी, जिसने अपने प्रियतम से मिलवाया।
मत छोड़ना कभी साथ हमारा, तुम ही तो हो एक सहारा।
" नीरज" को चाहत है सिर्फ प्रेम- रंग की, भूलूँगा कभी न एहसान तुम्हारा।
