समर्पित
समर्पित
मत हो प्राणी दु:खित तू इतना, जरा ईश्वर शरण तो जा ले।
आनंद अनुभूति तत्काल मिलेगी, समर्पित भाव तो ला ले।।
सच्चा मजा तो तब आएगा, जो अपने गुरु का यशगान कहेगा।
अपने बोझ को हल्का कर ले, गुरु की असली दौलत पाएगा।।
विषयों की शरण विषतुल्य दु:खदायक,देता तुझे अभिशाप है।
गुरु की शरण को जो हैं जाते, मिट जाते सकल संताप हैं।।
गुरु वचनों का जो पालन करते, गुरु उसकी सब पीड़ा हरते।
अपने अहम की बलि तू दे दे, मैं- मेरा को तू-तेरा करते।।
श्रद्धा,विश्वास मत कम होने देना, समर्पण योग संंशय मुुक्त करता।
"नीरज" "समर्पित" तू गुरु को कर दे, मिलेगी जीवन में सफलता।।
