समलैंगिक और समाज
समलैंगिक और समाज
समलैंगिक और समाज
क्यूं मेरे ख़्वाब को चकना चूर किया जाता है,
समलैंगिक हूँ तो मुझे मुझसे ही दूर किया जाता है
समलैंगिक ही तो हूँ कोई कातिल नहीं
फिर क्यूं मुझे मरने पे मजबूर किया जाता है
ये मारनाये पिटनाये गालियाँ घसीटना ये कोनसा समाज है
ये कोनसा लिहाज है जो खुद पे इतना गुरूर किया जाता है
कितना अजीव समाज है नये सभ्य बाते करता है,
बेगुनाह समलैंगिक छोड़ के बाकि सब पाप मंजूर किया जाता है
ये तुम्हारा रौब ये तुम्हारी निर्दयीता देख रोता हूँ ऐ समाजतुम क्या जानो
समलैंगिक होकर किस खौफ़ में जिया जाता है
प्यारपरिवार सब देखना पड़ता है मुझे,
इसिलिए कई बार मेरे द्वारा मुझे ही मार दिया जाता है
मुझे समझोमेरी खामोशी पहचानो ऐ समाजचुप होकर कितना चीखता हूँ
मेरे भीतर हर पल कोई चीख पुकार किया जाता है
हा मैं समलैंगिक हूँ जो सच्चाई स्वीकार करलूँ,
फिर मेरे रक्षक द्वारा ही मुझे मार दिया जाता है
जुल्म की पहली कड़ी हम पे आजमाई जाती है,
जो रूह तक कँपा दे हमपे ऐसा अत्याचार किया जाता है
वैश्या घर सिर्फ वैश्याओं का ही नहीं होता
हम समलैंगिको का भी देह का व्यापार किया जाता है
यू तो आजादी मिल गई हम समलैंगिको को कागजो पे,
मगर उस आजादी का हक माँगे तो मार दिया जाता है ?
समलैंगिक है बस इतना सा अलग है हम में और ये लोग,
हमें हिजड़ा छक्का कलंक मीठा कई नामों का अम्बार दिया जाता है
माँगा क्या हमने तुमसे ऐ समाज़ कि थोड़ी सी आजादी चाही
मगर इसी समाज के जरियें हमारा जीवन बेकार किया जाता है
यूँ तो बड़े उदाहरण देता ये समाज मानवता को लेकरबात जब
समलैंगिकता की आ जाये तो इसी समाज द्वारा
इंसानियत को शर्मसार किया जाता है
ये आजादी तो बस नाम की जो सलाखों से बचाती है,
पर समलैंगिकों को तो घरों में कैद हर बार किया जाता है।