समझना वो भी जो कह न पाए,,,,,,
समझना वो भी जो कह न पाए,,,,,,
मैं हूँ कुशल से तुम भी होगी कुशलता से,
दिन बहुत बीते देखे और मिले तुमसे।
याद,बहुत याद आती है तुम्हारी तब,
ये जीवन नैया जा फंसे मझधार में जब।
किंकर्तव्यविमूढ़ हो तकती हूँ के आ तुम संभालोगी,
किसी न किसी किनारे पे खींच निकालोगी।
बीमारी में अपनी या बच्चों की नुस्ख़े तुम्हारे आज़माती हूँ,
पर वो आराम कहाँ जो तुम्हारे सुघड़ हाथ में पाती हूँ।
किन शब्दों में बयां करूँ किन रिश्तों में तुम बांधे हो,
भाभी हो सहेली हो या कह दूँ तुम बिल्कुल माँ - सी हो।
मेरी नादानियों पे घण्टों बैठ समझाया कभी,
कभी गोद अपनी दी तो माथा था सहलाया कभी।
जीवन का सूत्र उलझता तो है अब भी,
ढूढ़े न मिलता सिरा उसका देखो न अब भी।
आओ राह तकती निगाहों को तृप्त कर दो,
सूने जीवन में नव उत्साह फिर से भर दो।
कहना तो बहुत है, शब्द ही कम पड़ गए,
तुम वो भी समझना जो हम कह न पाए।