समझें अपने देश में समृद्धि कैसी आ गई।
समझें अपने देश में समृद्धि कैसी आ गई।
चलो समझें अपने देश में , समृद्धि कैसी आ गई।
काटें गले निज स्वार्थ में, ये बुद्धि कैसी आ गई।।
ख़ौफ़-ए-खुदा न रंजो ग़म, न था डर समाज का।
कल एक माँ, फिर गर्भ की, बच्ची को अपने खा गयी।
मेहंदी भी नहीं सूखी थी, वो थी बेटी गरीब की।
दहेज के खिलाफ जो, जौहर हमें दिखा गयी।
डिग्री थी उसके हाथ में और जिस्म लहु लुहान।
एक नौजवान लाश थी ,पटरी के ऊपर छा गयी।
इंसानियत का खून हो , लगें मज़हबी नारे ।
है कुफ्र! क्यों अब भीड़ को , हैवानियत ही भा गई।
जीना हुआ मुहाल सब हैं, घरों में नजरबंद।
कैसी महामारी कोरोना , यहां आ गईं
