" समापक "
" समापक "
दवा नहीं, डॉक्टर नहीं, बिस्तर नहीं,
लोग अपनी जान धोते जा रहे हैं !
मातम सारे देश में ही फैल गया हैं,
अपने भी तो पराए होते जा रहे हैं !!
आक्सिजन की किल्लत यहाँ पर,
टीके भी मिलना मुश्किल हुआ है !
रास्ते पे हम लावारिस बन गए,
मौत का तांडव यहाँ फैला हुआ है !!
कोरोना का कहर जब सुसुप्त था,
घंटियाँ, थालियाँ ढोल बजाये गये !
विजय के गान सारे विश्व में ही,
हम रोज सबको बारबार सुनाने लगे !!
दिग्भ्रमित करके लोगों की चाहत,
नए संसद के लिए खर्च किया !
“आयुष्मान भारत“ चोला सबको,
बिना अनुदान से पहना दिया !!
“ राम राज्य “ की चाहत में हम,
कैसे हम सपनों का महल बनाएंगे !
हम कुछ क्षण भले ही मौन रहें पर,
इतिहास में “ समापक ” कहलाएंगे !!
