समाज लोगों से बनता है
समाज लोगों से बनता है
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
फिर ना जाने क्यों इस समाज की वजह से
लोग अपनी जिंदगी ही दांव पर लगाते,
गलत फैसले लेते हैं और लेते चले जाते।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
समाज की सोच कर कभी यह मानसिक तनाव में आते
कभी समाज की सोच कर ये खुदकुशी कर जाते।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
फिर क्यों कुछ लोग अपनी सोच को बदल नहीं पाते
एक नए समाज की सोच का निर्माण नहीं कर पाते
समाज की दकियानूसी सोच की वजह से अपनी जिंदगी गवाते।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
क्यों ना इस सामाज को एक नई दिशा दी जाए
क्यों ना समाज की सड़ी गली सोचो को दरकिनार कर
एक नए समाज की नींव रखी जाए
जो किसी की जिंदगी को ना गवाएं
किसी को गले लगाना सिखाए।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
हम पहले अपने से ही शुरुआत करें,
हम आगे बढ़े और बढ़ते जाएं,
हम जिस समाज को चाहते हैं,
उसका निर्माण निरंतर करते जाएं
उस समाज के निर्माण में अपना कदम आगे बढ़ाएं।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
समाज को बदलने से पहले
हमें अपने अंदर ही अच्छाई की शुरुआत करनी होगी
ताकि इस सोशल मीडिया के जमाने में सोशल कमेंट को
पढ़कर कोई अपने जीवन को ना गवाएं
खुद जिए और दूसरोंं को जीना सिखाए।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
आज सोशल मीडिया इतना प्रभावशाली है
जिंदगी की दिक्कतों को लिखकर
लोग अपना ही मजाक उड़ाते हैं
खुशियों का दिखावा करके
अंदर ही अंदर टूट से जाते हैं
दिखावे से बाहर आए नए समाज की नई सोच बनाएं।
समाज लोगों से बनता हैं लोग समाज से नहीं
कुछ लोग तो समाज की मर्यादाओं को इस तरह भंग कर जाते हैं
किस शर्म की ओढ़नी भी ओढ़ नहीं पाते हैं
स्त्री हो या पुरुष हो कुछ लोग समाज की मर्यादा का
सम्मान नहीं कर पाते हैं पर यह
समाज है क्या कहेगा यह कभी सोच नहीं पाते।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
कुछ लोग समाज की परवाह किए बिना आगे बढ़ते जाते हैं
और कुछ लोग समाज की परवाह में ही पूरी जिंदगी
ना चाहते हुए भी आग में तपाते हैं और
ताउम्र झुलस के रह जातेे यही लोग
{डिप्रेशन} मानसिक रोगी बन जाते।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
लोग क्या कहेंगे यह सोचकर अपने ही लोगों को
यातनाएं दिलाते हैं कभी किसी लड़की का शोषण करते
कभी किसी लड़के के ऊपर संकट पैदा करते जाते।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
तो फिर क्यों हम बुरी सोच को बदल पाते नहीं
तनावग्रस्त होकर अपनी जिंदगी को बिताते चले जाते हैं
लोग क्या कहेंगे इस सोच से निकल पाते नहीं|}
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
जीवन भर लड़का लड़की का भेद इस समाज ने किया
इस जेंडर भेद को हम सब मिलकर क्यों मिटा पाते नहीं।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
थर्ड जेंडर को भी हम उनका अधिकार दिला पाते नहीं
दिल छू देने वाली उनकी मार्मिक
कहानियां क्योंं भला हम सुन पाते नहीं।
समाज लोगों से बनता है लोग समाज से नहीं
क्यों एक नए समाज के निर्माण में हम लग जाते नहीं
क्यों हम सब मिलकर एक नए
समाज का नया निर्माण कर पाते नहीं।
{ समाज हमसे बनता है हम समाज से नहीं
हम सबको मिलकर एक नया समाज बनाना है
जिसमें सबको समानता का अधिकार दिलाना है
ईश्वर ने सृष्टि रच्चते समय तो कोई भेद नहीं किया
फूल बनाए सुगंध दिया
वृक्ष बनाएं फल दिया
नदी बनाई जल् दिया
स्वार्थी होकर मानव ने एक दूसरे का अधिकार छीन लिया
लड़ाइयां - झगड़े की मानव ने ही मानव के शीश को गर्दन से उतार दिया
समाज तो बनाया ही एक दूसरे के साथ और विश्वास के लिए था
तो आज हम यह कैसा समाज बना रहे की (डिप्रेशन)
मानसिक अवसाद में आकर कम उम्र के
बालक बालिका सूली पर चढ़ा जा रहे
हमें इसे बदलना होगा ऐसा कुछ करना होगा}