सिसकियां
सिसकियां
आँखें बंद तो करता हूं सोने के लिए,
पलकें गिराते ही तुम नजर आने लगती हो,
फिर नींद कहां, बस सिसकियां ही होती है पास मेरे
ये सिसकियां ही लोरियाँ बन मुझे सुलाने लगती है,
सब कहते हैं कि वक्त के साथ जज़्बात बदल ही जाते हैं,
मेरे जज़्बात तो वक्त को ही आँखें दिखाने लगती है,
अगर कुछ दिनों तक तुम्हारी कोई खबर न मिले,
तो मन डर सा जाता है, मेरी रूह छटपटाने लगती है,
इतनी चाहत के बाबजूद भी हम एक दूसरे को पा न सके,
अब बस चुपचाप चाहते रहना ही अपनी जिंदगानी लगती है।

