सिर्फ तुम्हारे लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए
एक कविता लिखी है मैंने,
जिसमे तेरे होने की बात की है,
बात की है उन लम्हों की
जिसमे हम डूबे रहते थे,
उन बाहों की
जो बांधे रखते थे हमें एक दूजे से,
उन उंगलियों की
जिसमे मेरी उंगलियां
अक्सर उलझी रहती थी,
बात तुम्हारे मुस्कराने की,
पल मे रूठ जाने की बात की है,
बात की है जिंदगी की,
उसके होने ना होने की.....
सुनो तुम पढ़ती भी हो "मुझे"
मेरी कविताओं में,
मेरे अंतर्मन मे उपजे
उन शब्दों को,
जो बार- बार
बस तुम्हे ही पुकारते हैं,
तेरे होने का अहसास मुझे दिलाते हैं,
तुम्हे ही ढूंढती है निगाहें मेरी
यहां वहां बेबस होकर,
मेरी मन की तड़प भी ठहर सी जाती है,
जहां तुम्हारी खुशबू बिखरी होती है अक्सर.....
तुम्हारी यादों को बस खुद मे समेटे हुए
जब भटकता हूं इन वादियों मे,
ढूंढता हूं तुम्हें......।
क्या मेरी मन की आवाज
तुम तक पहुंचती भी है,
या मेरे आंसुओं में
यूं ही बह जाते हैं खामखां........
तुम मेरे मौन के संवाद को
जब अनसुना सा करती हो,
या सुनना नहीं चाहती
मेरी भावनाओं की उथल पुथल को,
उसके रूंध सुरों को
जिन्हे रचता हूं मैं,
मेरी कविताओं में,
पिरोता हूं एक- एक शब्द श्रंगार सहित
सिर्फ तुम्हारे लिए.....।।