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Vikas Sharma

Tragedy

4  

Vikas Sharma

Tragedy

सिमटते परिवार

सिमटते परिवार

2 mins
227



चूना -सीमेंट -पत्थर-मार्बल -दीवारें और छत्त

बिना इंसानों के ये मात्र मकान है

घर बनता है बड़ों से -बुजुर्गों से और बच्चों से

घर बनता है संस्कार -आत्मीयता और इंसानियत से


जाने कहाँ गए वो दिन जब सुबह उठते ही बुजुर्गों के पाँव छूते थे

घूंगट की ओट में धीमी आवाज़ में बहुएं बात करतीं थीं

छोटे से बड़े परिवार में साँझा चूल्हा होता था

बच्चे छुपम छुपाई -सितोलिया -लंगड़ी टांग खेला करते थे


जहाँ लड़कियां पेड़ों पर झूले झूला करतीं थीं

माँ -चाची -ताई -भाभी कोई भेद नहीं

जहाँ शर्म -लिहाज -इज्जत -मान -के गहने हुआ करते थे

जहाँ छत्त पर पानी का छिड़काव करके सब साथ सोया करते थे


आज घर आधुनिक हो गए और मानसिकता संकीर्ण

आज टीवी -मोबाइल -सिनेमा ने सबको नंगा कर दिया

संबंधों -दर्द -आत्मीयता -संस्कार -इंसानियत में दीमक लग गई

बड़े बुजुर्ग पीस या वृद्धाश्रम के होकर रह गए


हम दो हमारे दो और आजकल तो एक भी चलता है

ना साथ खाना ना पीना ना हंसी ना मजाक

अपने अपने कमरों में टीवी -मोबाइल -लैपटॉप संगी साथी हो गए

फेसबुक -इंस्टाग्राम -ट्विटर -टिकटोक -व्हाट्सप रिश्तेदार हो गए


अब तो एक कमरे से दूजे कमरे में भी मोबाइल होता है

पति पत्नी के बीच भी व्हाट्सप संवाद होता है

बच्चे माँ बाप को दोस्त ज्यादा माँ बाप कम समझते हैं

रूपया -पैसा -गाडी -बंगला जीने के आधार हो गए


परिवार छोटे ही नहीं बेहद छोटे हो गए

परिवार सिमटते सिमटते पूरी तरह तय हो गए

हम दो हमारे दो भी जीवन चक्र में

एक दिन दो ही रह गए।


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