शऊर
शऊर
उफ़न रहा
इश्क़ का
शऊर देखो
जिसने देखा हो
वो भी ज़रूर
देखो
भूख प्यास
दिन रात से
आगे बढ़ती है
कहानी
इश्क़ दे जाता है
सबको
अपनी निशानी
आँखों में बेचैनी
दिल में सयानापन
कौन कहता है
इश्क़ में नहीं होता
दीवानापन
शिद्दत क्या होती है
एक आशिक़ से
मत पूछना
बता देगा
वरना शमां की
लौं में परवाने का
जलना
अक़ीदत भी बहती
हुई हवा की
बानगी है
जिधर का रुख
होगा
वो उधर
मुड़ जायेगी
मेरी पलकें
जो नम है
तेरी याद लिए
उन्हें कसम देता हूँ
वो न तुम्हें
रुलाएगी
जितने भी आंसू है
वो सभी नग़मे है
तेरी उल्फ़त के
ये और बात है
गाये न गए
बिना दर्दमंद साज़ के।

