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Vipin Saklani

Tragedy

4.5  

Vipin Saklani

Tragedy

शून्यता

शून्यता

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 शून्य से----ऊपर उठने की
 हरपल करता हूँ कोशिशें।
 किंतु मुझे रोकने की, भ्रम या
 हवा भी करती हैं साजिशें ।

 चाहता तो मन बहुत है,
 कि हर पल मुस्कुराता रहूँ,
 आनंद और उल्लास संग रहे,
 वीराने में फूल खिलाता रहूँ।।

  किंतु अनजाना छद्म भय, है
  मन के हरेक कोने में,
  चैन-ओ-सुकून ढूँढ रहा हूँ,
  अपने घर के बिछौने में।

 बातें भले ही रोज मस्ती की,
 लेकिन खुद से लड़ रहा हूँ,
 भाग्य में लिखे सुख-दुख से,
 नित हृदय को रगड़ रहा हूँ।

 विचारों की हाथापाई में,
 हुआ सफल और विफल कौन,
 द्वंद इस कदर है जीवन में,
 बैचेन मन हुआ है मौन ।

 है भीड़ हजारों की आस पास,
  किंतु खुद को अकेला ही पाता हूँ,
  सुनकर सबकी सलाहों को,
  फिर-फिर शून्य हो जाता हूँ।

मैं फिर शून्य हो जाता हूँ........


विपिन सकलानी 


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