अंधेरा जीवन
अंधेरा जीवन
*अंधेरा जीवन*
चीख रही हैं ये नदियां,
रूदन चीत्कार दरख़्तों का,
सुनने को तैयार नहीं,
भोग विलास रत मानव है।।
वृक्षारोपण केवल भाषण में ,
पर्यावरण फेस बुक पर छाया है,
चहुंओर बिखरता प्लास्टिक है,
मदिरालय में मस्त मानव है।।
शौक राफ्टिंग की दौड़ की,
हनीमून को नव दंपति धामों में ,
श्रद्धा विहीन यात्रा पर ,
नग्नता के शीर्ष में मानव है ।।
लत AC की लगा लिए,
तन से न परिश्रम करना है,
होटल का खाना हजारों में,
उलझाता अन्नदाता से मानव है।।
घर किचन को साफ रखे ,
पर कचरा बाहर बिखेरना है ,
धरती चाहे रोए जी भर,
फेशियल कर इतराता मानव है।।
किसान खेती करे कैसे ,
जब खेतों में भी मॉल खुले,
इठलाता 2 पीस चिप्स लिए,
आलू महंगा है मानव कहे।।
जंगल भस्म स्वाह हुए,
बरखा भी निज भाव भूल गई ,
लुप्त होने को ग्लेशियर हैं ,
नदियों में जल अब दिखे नहीं।।
कारों की लम्बी लाइन से,
कार्बन का जो विस्फोट हुआ,
जान बूझकर अनजान बना,
आदत से हुआ भ्रष्ट मानव है।।
ऋषिकेश हरिद्वार सिसक रहे,
बेलगाम पर्यटकों के जामो से,
निज घरों में ही कैद हुए,
हुड़दंगी भी पर्यटक मानव है।।
विपिन सकलानी
