रामायण ४८ ;कुम्भकर्ण की मृत्यु
रामायण ४८ ;कुम्भकर्ण की मृत्यु
रावण व्याकुल हुआ ये सुनकर
कुम्भकर्ण के पास गया वो
बहुत यत्न से उसे जगाया
काल का रूप था लग रहा वो।
रावण ने सब कथा सुनाई
दुखी हुआ वो ये सब सुनकर
बोला भाई, अच्छा नहीं किया
जगज्जननी सीता को हरकर।
राम मनुष्य नहीं वो भगवान हैं
नारद ने ये ज्ञान मुझको दिया
तुमसे अब तक कह न पाया
पर अब तो वो समय निकल गया।
रावण ने मंगवाए भैंसे
घड़े भर भर मदिरा मंगवाई
खा पी कर वो गरजा जैसे
वज्रघात की आवाज हो आई।
उसे देख विभीषण आये
उनको सारी कथा सुनाई
कैसे लात मारी रावण ने
और राम की शरण थी पाई।
वो बोला, रावण तो काल के वश में
मेरी भी मानो मृत्यु आई
चले गए विभीषण वहां से
राम को सारी बात बताई।
वानर भालू फेकें पहाड़, वृक्ष
उसपर कोई असर न हुआ
तब हनुमान ने घूँसा मारा
गिरा पृथ्वी पर और व्याकुल हुआ।
उठकर हनुमान को मारा
गिर पडे वो चक्कर खाकर
फिर उसने सुग्रीव को पकड़ा
ले चला काँछ में दबाकर।
वानर अत्यंत भयभीत हो गए
हनुमान की मूर्छा टूटी
सुग्रीव कांख से नीचे गिर गए
उनको कोई होश नहीं थी।
जब उनको थोड़ी सुध आई
नाक कान काटे राक्षस के
कुम्भकर्ण को क्रोध आ गया
गरजा वो वानरों को खा के।
वानर सेना तितर बितर हुई
राम बोले, इसे देखूं मैं
हाथ में सारङ्ग धनुष है उनके
तरकश में बाणअद्भुत हैं।
बाणों की वर्षा सी की थी
फिर भी राक्षस मर न पाया
राम ने काट डाली उसकी भुजा
जब पर्वत उसने उठाया।
दूसरी भुजा से उठाया पर्वत
वो भी काट दी थी राम ने
मुँह में मारे बाण, काटा सिर
भेज दिया उसे परमधाम में।
सिर रावण के आगे जा गिरा
वो उसको कलेजे से लगाए
स्त्रियां विलाप करने लगीं वहां
मेघनाद रावण को समझाएं।