वक्त
वक्त
हाथ की मुठ्ठी से फिसलती रेत,
हर पल बीतते वक्त का है नमूना,
जिंदगी की दौड़ में ऐसे उलझे सब,
हरेक का जीवन हुआ सूना–सूना ।।
जीने का फलसफा जो सालों पहले था,
आब लगे जादू और कल्पना से भरा।
कब ओझल हुआ जीवन का सुकून,
पता ना चला फिसलता वक्त मद भरा।
पहले हर कहीं आने–जाने की फुर्सत,
तबीयत से मुक्कम्मल थी सबके पास,
दिल खोल बातें, हंसना वो अल्हड़पन,
अब कहां वो वक्त, हर कोई है उदास ।।
थी निश्चित पहले किसी उम्र तलक हर सांस की डोर ,
अनजाने घबराहट से डराती अब हर सांझ औ भोर ,
जो जमघट पहले लगा रहता था हर घर में,
बेजुबान दीवारें भी अब मुंह चिढ़ाती है हमें।
कहकहों, चिल्लपों, ठहाकों की आवाजों से गूंजता था जो अपना बचपन,
अब वो मोबाइल में फंसा हुआ सा दिखाई देता है,
जाने किसकी लग गई नजर, जीवन के सुहाने सफर को,
अब दुनिया भले ही मुठ्ठी में, पर जीवन सूना सूना लगता है ...
जीवन सूना –सूना सा लगता है....।
