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Vipin Saklani

Crime Thriller

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Vipin Saklani

Crime Thriller

अनजाना भय

अनजाना भय

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छिपे खतरों से है आशंकित मन,

होता अति भय का आभास निरंतर,

गुमशुदगी बहुत हो रही इर्द गिर्द,

हरपल बेचैन मन कर रहा रुदन ।


सुरक्षित जिन्दगी लुप्त सी हो गई,

बेखौफ भ्रमण पर लग रहा ग्रहण,

नित्य राह चलते गुमशुदा होते नौनिहाल ,

अपहरणकर्ता सा लगे संदिग्ध राहगीर।


कभी बेटी , तो बेटे होते कभी गुम,

आते–जाते राह से हो जाते वे लोप ,

अब डर भी नहीं किसी नगर कोतवाल का,

गुंडे मवाली बैखोफ घूमते भरी दोपहर ।


मानव अंग की तस्करी में शामिल कुछ लोग,

अंग खरीद–फरोख्त का बढ़ रहा है बाजार ,

नही मिलते कोई आसानी से अंगदानी यहां,

शायद बच्चे इसलिए गुम होते चहुंओर।


हो घर का चिराग , या सयानी बिटिया कोई ,

खतरे की आहट को शीघ्र ही पहचान ना पाए तो,

सोचिए क्या मंजर होगा जब टुकड़ों में मिले कहीं,

संवेदनाएं दम तोड़ रही, अब ना जाने क्यों ...? 



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