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Dhan Pati Singh Kushwaha

Drama Crime Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Drama Crime Inspirational

तार-तार हो रही मानवता

तार-तार हो रही मानवता

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मुर्दे का मांस नोचने की गिद्ध प्रवृत्ति छोड़ो,

न चलाओ मानवता पर ऐसे घातक तीर।

तार-तार तेरे कुकृत्यों से हो रही मानवता ,

शर्म करो कायरों समझते हो खुद को वीर।


मानवता की करने को तूने निर्मम हत्या

अपने बंधन तो तोड़ दिए हैं तूने सारे ,

मानव कहलाने का भी हक खो दिया है,

नर पिशाच के गुण आ गए तुझमें सारे।


जिनको तो चाहिए था मरहम दया का,

पी लिया तूने तो लहू उनका सीना चीर।

तार-तार तेरे कुकृत्यों से हो रही मानवता ,

शर्म करो कायरों समझते हो खुद को वीर।


काला बाजारी करने के लिए की जमाखोरी,

अभावों का झूठा ही भ्रम तूने ही फैलवाया।

मदद करने का एक झूठा ही नाटक रचाकर,

मज़बूर का धन तीन का तेरह तू ऐंठ लाया।


धोखा देकर सोचता तू बन गया है एक राजा,

मन से है दो दिन राजा फिर से बनेगा तू फकीर।

तार-तार तेरे कुकृत्यों से हो रही मानवता ,

शर्म करो कायरों समझते हो खुद को वीर।


किसी के बुरे वक्त में मदद तू जो करेगा,

तेरे बुरे वक्त में तुझे भी तो सबसे मिलेगी।

एक झटके में अथाह सम्पत्ति भी है जाती,

मदद सद्आचरण से तो हरदम ही मिलेगी।


काटने को हर किसी को बोआ ही मिलता,

सुकूं मिलता जो बांटते किसी जन की पीर।

तार-तार तेरे कुकृत्यों से हो रही मानवता ,

शर्म करो कायरों समझते हो खुद को वीर।


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