रोटी का टुकड़ा
रोटी का टुकड़ा
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ना जाने ये कैसा दौर आया है
रोटी के एक टुकड़े के लिए रुलाया है
ना जाने क्या लोगो के दिल में आया है
अपनों को अपनों ने ही भुलाया है
सामने बैठ कर लोग खाते हैं
भूखों को देख मुंह मोड़ जाते हैं
क्या अब यही दौर ए कठोर आया है
के लोगों ने दिलों में अब पत्थर जमाया है
अपनों को अपनों ने ही भुलाया है
अब तो दौर ए बेवफ़ा आया है
ऐ दोस्तों इतना तो जान लो यह जो ज़माना है
आज है कल को बदल जाना है
फ़िर क्यों गरीबों और खुद से छोटों को नीचा दिखाना है
इतना जान लो इस अन्न पे सब का हक़ है
सिर्फ़ खुद ही नही सभी को खिलाना है
कोशिश तो यही करते जाना है।