कोरोना काल
कोरोना काल
करे क्या कलम कुसाई
ना जाने कैसी घड़ी है आई
अपनों ने ली है अपनो से विदाई
सभी ने है आंसु बहाई
कतारें है लगी लाशों की
गरीबों ने है जान गवाई
ना जाने क्या है यह
नाम क्या दे इस वक्त को
क्या है यह कहर ए ईलाही
जो उसने हम पे बरसाई
या हैं कुछ ऐसे कर्म हमारे ही
जो हम ने यह सज़ा है पाई।