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Pratyush Gautam

Abstract Tragedy Crime

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Pratyush Gautam

Abstract Tragedy Crime

क्या यही भारत है !?

क्या यही भारत है !?

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ये बदक़िस्मत अखबार भी

रोज़ मेरे हाथों में बिलखती है,


जहाँ की बेटियाँ अंगों की

भिन्नता का दंश झेलती हैं

क्या यही भारत है ?


जहाँ नहीं थमती दासतां,

जिस्म-औ-रूह ज़ार करने की,

जहाँ नोच लेते हैं खुलेआम,

मासूम मांस के लोथड़े को


इतने से भी मन ना भरता,

तो तोड़ देते है गर्दन,

काट देते हैं जुबां को


अब बता दो और कुछ बाकी भी है क्या,

दरिंदगी की हद पार करने को !


और कुछ बाकी भी है क्या,

दरिंदगी की हद पार करने को !


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