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Rajesh Singh

Action Crime Inspirational

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Rajesh Singh

Action Crime Inspirational

अंधेरे की चीख‌

अंधेरे की चीख‌

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ज्येठ महीने की थी बात , 

भीषण गर्मी की थी रात।

स्कूल हमारे बंद हुए थे,

थक के हम भी चूर हुए थे।

मानव रूपी भेड़िया आया,

उस वहशी को तरस ना आया।

मैं छोटी बच्ची लाचारी थी,

घर की प्यारी दुलारी थी।

उस अंधेरी रात मैं चीखी थी,

माँ बापू कहकर बिलखी थी।

उस भेड़ियों को तरस ना आया,

मैं बच्ची पर तरस ना आया।

मैं एक बच्ची दलित लाचारी,

लोगों के लिए छूत थी।


मैं उस अंधेरी रात रोई,

बिलखी चीखी थी।

उस मानव रूपी भेड़िए ने,

उस रात कहर बरपाया था।

माँ माँ कहते कहते,

उस रात मुझे तड़पाया था।

उसे काली अंधेरी रात में,

मेरे कोमल से जिस्म में।

दानव जैसे दांत गड़ाया था।

उसे ज्येठ की रात मुझे,

मानवता पे शरम आया था ।


उस अँधेरी रात को चीखते हुए,

हाय माँ हाय पा कह के,

मैंने कैसे रात बिताया था।

मैं भी तुम्हारी बहन बेटी हूँ,

कुछ तो मुझ पे तरस करो।

मैं एक दलित बेटी हूँ,

कुछ तो खुद पे शर्म करो।

दलित होने पे तुम छूत मानते,

बलात्कार करते कुछ नहीं मानते।

ये कैसे इंसान हो तुम ,

इंसान हो या हैवान हो तुम।



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