श्रीमद्भागवत २ ;नारद का उद्योग
श्रीमद्भागवत २ ;नारद का उद्योग
नारद बोले, खेद न करें
भगवन कृष्ण का करो तुम चिंतन
दुःख दर्द सब दूर करें वो
बहुत कोमल है उनका मन।
द्रोपदी की रक्षा की थी
सनाथ किया गोपिओं को उन्होंने
तुम तो फिर भक्ति हो जो
प्राणों से प्यारी हो सदा उन्हें।
सतयुग, त्रेता और द्वापर में
ज्ञान, वैराग्य मुक्ति के साधन
पर कलयुग में तो भक्ति है
मोक्ष का एक ही माध्यम।
भगवन से पूछा एक बार था तुमने
क्या करूं ?, उन्होंने आज्ञा दी
मेरे भक्तों का पोषण करो
तुमने तब सवीकार आज्ञा की।।
हरी प्रसन्न हुए, उनसे तुमने
मुक्ति, दासी रूप में पाई
ज्ञान, वैराग्य दिया पुत्र रूप में
तीनों को ले तुम पृथ्वी पर आई।
सतयुग,त्रेता, और द्वापर तक
बहुत आनंद से, तुम रहे वहां
कलयुग में मुक्ति क्षीण हो गयी
चली गयी वो बैकुंठधाम जहाँ।
तुम्हारे समरन से वो आति है
फिर चली जाये, अपने आवास
ज्ञान, वैराग्य पुत्र तुम्हारे
तुमने रख लिये अपने पास।
इनकी उपेक्षा हुई कलयुग में
इसीलिये हैं वो वृद्ध् हो गये
फिर भी मैं सोचुं उपाय
जिससे इनका कष्ट न रहे।
घर घर में स्थापित करूं तुम्हे
जिस जीव में भक्ति होगी
पापी भी चाहे हो, फिर भी
उस जीव की मुक्ति होगी।
भक्ति वो मार्ग है जिससे
वशीभूत होते भगवान हैं
जो लोग भक्ति से द्रोह करें
दुःख का ना होता निदान है।
अपने महातम को सुनकर भक्ति
सारे अंगों से पुष्ट हो गयी
कहा नारद से, ह्रदय में रहूं मैं
भक्ति थी सतुष्ट हो गयी।
कहे भक्ति, हे मुनिश्रेष्ठ
दूर हो गया, मेरा दुःख तो
चेतना न आई पुत्रों को
मिटाओ अब इन के भी दुःख को।
सुन वचन भक्ति के दुखभरे
नारद जी को करुणा आई
हिला डुला के जगाएं उन्हें वो
वेदध्वनि, गीता सुनाई।
थोड़ा सा उठने को हुए वो
होंठ उनके सूख रहे थे
शरीर उनका बहुत दुर्बल था
बाल सफ़ेद सब हो गए थे।
भूख प्यास से फिर निढाल हुए
नारद जी को तब चिंता भई
करें स्मरण वो प्रभु का
वहां तभी एक आकाशवाणी हुई।
उद्योग तुम्हारा सफल ही होगा
एक सत्कर्म तुम्हे करना होगा
वो जो तुमको संत बताएं
उससे इनका दुःख हरना होगा।
वृद्धावस्था इनकी चली जाये
प्रसार भक्ति का होगा पृथ्वी पर
पर नारद जी समझ न पाए
मुझे वो संत मिलेंगे कहाँ पर।
ज्ञान, वैराग्य को छोड़ वहां पर
चल पड़े वो, मुनियों से पूछें
साधन तुम ये मुझको बतलाओ
पर कोई निश्चित उत्तर न दे।
सब सोचें जब वेदध्वनि से
गीता सार से वो न जागे
कुछ कहें उपाय कोई न
कुछ तो प्रशन से दूर ही भागें।
सोचें वो जब नारद भी न जानें
और कोई कैसे बताये
नारद तब चिंतित हुए थे
बदरीवन में वो थे आये।
वहां उन्हें सनकादि मुनि मिले
उन्हें भी पूछें क्या साधन है
सनकादि कहें, चिंता न करो
उपाय पहले से विद्यामान है।
श्रीमद्भागवत के शब्द सुनते ही
ख़त्म दोनों के कष्ट हो जाएं
भक्ति को आनंद मिलेगा
कलयुग के कष्ट नष्ट हो जाएं।
नारद पूछें ये कैसे होगा
वेदों का ही तो सार है इसमें
वेदध्वनि से ना जागे वो
तो इससे कैसे जागेंगे।
सनकादि बोले श्रीमद्भागवत
उत्तम, वेदों और उपनिषदों में
जैसे वृक्ष के हर हिस्से में रस
मिठास होती बस है एक फल में।
दूध में घी होता ही है पर
अलग होकर ही स्वाद है आये
ऐसे ही भगवत कथा है
सुनकर मन आनंदित हो जाये।
व्यास जी ने रचना की इसकी
भक्ति, ज्ञान की स्थापना के लिए
पूर्वकाल में व्यासजी को ये
आप ही ने सुनाया, चार श्लोक में।
फिर आपको आश्चर्य क्यों है
आप जाकर ये उन्हें सुनाओ
भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के दुःख
इसे सुनाकर दूर भगाओ।
