श्रीमद्भागवत -६८ ; ध्रुव जी को कुबेर जी का वरदान और विष्णु लोक की प्राप्ति
श्रीमद्भागवत -६८ ; ध्रुव जी को कुबेर जी का वरदान और विष्णु लोक की प्राप्ति
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स्वयम्भुव मनु के समझाने से
शांत हो गया ध्रुव का क्रोध जब
यक्षों के वध से वो निवृत हो गए
भगवान कुबेर आये वहां तब।
ध्रुव हाथ जोड़ खड़े हो गए
कुबेर जी ने तब कहा था उनसे
दादा के उपदेश से वैर त्याग दिया
इससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ तुमसे।
वास्तव में न तुमने मारा यक्षों को
न यक्षों ने तुम्हारे भाई को
सबकी उत्पति और विनाश का
कारण एक है, भगवन काल जो।
भगवान तुम्हारा मंगल करेंगे
चले जाओ यहाँ से अब तुम
सब जीवों में समदृष्टि रखकर
श्री हरि का भजन करो तुम।
सुना है भगवान कमलनाभ के
चरणों के समीप तुम रहते
इसीलिए वर पाने योग्य तुम
जो इच्छा हो तुम कह सकते।
यक्षराज ने जब आग्रह किया
इस तरह वर मांगने को
ध्रुव जी ने उनसे ये माँगा
भूलूँ न कभी मैं प्रभु स्मृति को।
कुबेर जी ने प्रसन्न होकर फिर
भगवान स्मृति प्रदान की उन्हें
अंतर्ध्यान हुए वर देकर
ध्रुव जी भी अपने नगर को गए।
राजधानी में रहकर उन्होंने
बड़े बड़े कई यज्ञ किये थे
वो अपने में और सभी प्राणियों में
हरि को ही देखने लगे थे।
वो बड़े ही ब्राह्मण भक्त थे
मर्यादा, धर्म के रक्षक थे वो
प्रजा भी उनको प्रेम करे और
पिता समान मानती उनको।
उन्होंने छत्तीस हजार वर्ष तक
शासन किया था पृथ्वी का
फिर दिया राजसिंहासन उत्कल को
बद्रिकाश्रम प्रस्थान किया था।
वायु को वश में करकर
वहां उन्होंने प्राणायाम से
विराटस्वरूप में स्थित किया मन को
लीन हो गए वो समाधि में।
बार बार उनके नेत्रों में
आनन्दाश्रुओं की बाढ़ आ जाये
देहाभिमान ख़त्म हो जाने से
अपनी भी सुध न रही उन्हें।
आकाश में उसी समय एक सुंदर
विमान उतरते देखा ध्रुव ने
उसमें दो श्रेष्ठ पार्षद
गदाओं के हाथ में लिए खड़े थे।
हरि का ही सेवक मान कर
प्रणाम किया उन्हें ध्रुव जी ने जब
नन्द, सुनन्द थे प्रभु के पार्षद
मुस्कुराते हुए वो बोले तब।
हे राजन, बालकपन में ही
प्रभु को प्रसन्न कर लिया था आपने
भगवान की आज्ञा से आए आपको
उनके धाम ले जाने के लिए।
आपने अपनी भक्ति से ये
अधिकार प्रपात किया, विष्णु धाम का
निवास कीजिये आप वहां पर
विमान में बैठकर अब चलिए वहां।
भगवान का ये विष्णु धाम जो
सारे संसार में वन्दनीय है
जहाँ कोई नहीं पहुंचा आज तक
आप वहां रहने योग्य हैं।
स्नान किया, संध्या वंदन कर
ध्रुव ने वहां मुनियों को प्रणाम किया
जो बद्रिकाश्रम में रहते थे
मुनियों ने उनको आशीर्वाद दिया।
इतने में उन्होंने देखा कि
काल खड़ा वहां मूर्तिमान हो
मृत्यु के सिर पर रखकर पैर फिर
अद्भुत विमान में चढ़ गए वो।
आकाश से फूलों की वर्षा हुई
ध्रुव जा रहे विष्णु धाम को
विमान जाने को तैयार तभी
माता सुनीति को स्मरण करें वो।
नन्द, सुनन्द पार्षद हरि के
ध्रुव के हृदय की बात जान गए
दिखाया उनको माँ सुनीति जा रहीं
दूसरे विमान में आगे आगे।
विमान त्रिलोकी को पार कर
पहुंचा विष्णु के नित्यधाम में
भगवान हरि की कृपा से
अविचल भक्ति प्राप्त की उन्होंने।
यह दिव्य धाम हरि का
प्रकाशित होता अपने ही प्रकाश से
और जो ये तीनों लोक हैं
इसके प्रकाश से प्रकाशित होते।
इस लोक की महिमा देखकर
नारद जी ने वीणा बजाकर
प्रचेताओं की यज्ञ शाला में
तीन श्लोक गाए इस लोक पर।