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कथा श्रीराम की

कथा श्रीराम की

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अमर गाजा, व्योम से हुई पुष्प वर्षा

खिली धरा, जब रघुकुल दीपक जन्मा


प्रफुल्लित नगरी, दशरथ मन हर्षाय

नाज़ों में पला, नित तिल तिल बढ़ा


शिक्षा दीक्षा के लिए भेजा गुरु आश्रम

रधुकुल राजकुमार हुआ योद्धा जवान


उधर जानकीनाथ ने ऐसा पिंड रचा

उनकी राजकुमारी से करे शादी जो तोड़े धनुष


थर थर कांपी धरती आया ऐसा भूचाल

जब श्री राम ने तोड़ा धनुष बाण


सुरों ने पुष्प बरसाये, ब्रह्मा ने की स्तुति

जब रधुन्दन ने सीता से शादी रचाई


राज्य उत्तराधिकारी होगा ज्येष्ठ पुत्र ही

ये रीत रघुकुल की सदा से चली आई


ये बात पचा न पाई कैकयी भरत ही बने राजा

लगाई गुहार फिर न माने तो षड्यंत्र रचा


राजा दशरथ महल के अंतः कलह को समझ न पाये

विवश राजन दे दिया वचन राम चौदह वर्ष वनवास चले


आगे आगे राम चले पीछे सीता मैया

संग अनुज लक्ष्मण के पीछे दशरथ मन रोया


धर कोसो धर मंझलो चलते बने

सूर्योस्त पर विश्राम सवेरे फिर निकल जाते


कही शरण ऋषि मुनियों की

तो कही मिली उनकी आशीष स्वरूप


श्रापित पाषाण अहिल्या का किया मोक्ष

तो कही दीन दुखियों का किया कल्याण


कही भीलनी के हाथ के खाये बेर

जात पात तोड़ा की मानवता की सेवा


वनखण्ड घर है विपदा से न घबराये

शील स्वभाव के मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये


पीड़ितों की पीड़ा हरते गये

निर्बलों का बल बनते गये


खेल माया जाल का वो आसुरी सूर्पनखा थी

फँसे न लक्ष्मण नाक उनकी काटी थी


बदले खेल रच उनका भ्राता रावण था

मृग बना मामा रावण बना भिखारी था


हाय सीता हरण हुआ राम शिकार पर था

किस दिशा से आया रावण कहा गया पता न था


ये कैसी विपदा आ पड़ी कभी सोचा न था

ढूंढते हुए मिला मुर्छित जटायू पथ पर मिले आभूषण थे


चलते धैर्यवान को आया राज्य वहां वानरराज था

मिला हनुमान वो उनका प्यारा भक्त था


सुन पीड़ा प्रभु की क्षण भर भी हनुमान रुका न था

चल निकला वो स्थान समुन्दर पार था


असुरों की नगरी थी उसमे स्वर्ण लंका थी

लंका की अशोक वाटिका में बैठी सीता अकेली थी


लंकाधिपति रावण अपनी भार्या के साथ आता था

बन जा मेरी पटरानी बार बार सीता को समझता था


लंका में घुसा वानर ने भयंकर उत्पात मचाया

पकड़कर ले गये तो रामदूत ने रावण शीश झुकाया


माता सीता ने दी निशानी वो अंगूठी थी

रामदूत ने अपने प्रभु को सुनाई ऐसी कहानी थी


चलो अब रावण राम के युद्ध का शंखनाद कर लो

निर्माण कर सेतु का संग वानर सेना के चलो


राम किसी को मारता नहीं न हत्यारा राम

मर जायेंगे स्वयं ही कर कर के खोटे काम


युद्ध शुरू मचा ऐसा घमासान

एक एक कर रावण के योद्धा मरते गये


पुरुषोत्तम का भक्त बना वो विभीषण था

भेद लेकर बाण जो चला वो लक्ष्मण का था


ढह गई लंका मारा गया अहंकारी

बुराई पर हुई अच्छाई की विजय


सीता के चरित्र का सवाल लगी कहा कही

अग्निदेव साक्षी बने वह अब भी पतिव्रता है नारी


चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण हुआ अब चलो अयोध्या नगरी

दूत के साथ चले आमोद प्रमोद से ख़ुशियाँ मनाई ।।



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