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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत ३ ;भक्ति के कष्ट की निवृत्ति

श्रीमद्भागवत ३ ;भक्ति के कष्ट की निवृत्ति

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नारद कहें मैं ज्ञानयज्ञ करूं

कहाँ करूं मैं, स्थान बताएं

कितने दिन का, विधि इसकी क्या

शुकशास्त्र की महिमा सुनाएँ।


सनकादि कहें, आनंद घाट एक

पड़ता हरिद्वार के पास

अनेकों ऋषि वहां रहते हैं

सुंदर बहुत, जगह वो ख़ास।


शुरू कीजिये ज्ञान यज्ञ वहां

अपूर्व रस का उदय होगा

भक्ति, ज्ञान, वैराग्य का वहां पर

सुनके कथा, भला होगा।


नारद जी के साथ सनकादि

गंगा तट पर चले आये

भागवतामृत का पान करने वहां

विष्णुभक्त खिंंचे जाएं।


भृगु, वशिष्ठ, गौतम और

परशुराम वहां आये

और भी सब प्रधान मुनिगण

शिष्यों, पुत्रों को साथ लाये।


वेद, उपनिषद, मन्त्र और तंत्र

मूर्तिमान हुए छहों शास्त्र वहां

गंगा नदी, पुष्कर सरोवर

दिशाएं सभी बैठी वहां।


क्षेत्र समस्त, दण्डादिक वन

पहुंचे हुए हिमाल्यादि भी

सनकादि की वंदना करें वहां

देवता, सिद्ध गन्धर्व सभी।


आसन पर सनकादि बिराजे

स्तुति करें श्रोता उनकी

विमानों पर आये हैं देव सभी

वर्षा करें वो पुष्पों की।


सनकादि कहें महिमा कथा की

श्रवण से इसके मिलती मुक्ति

हरि ह्रदय में बिराजें और

अचल पाओ उनकी भक्ति।


अठारह हजार श्लोक हैं इसमें

और स्कंध पूरे बारह हैं

शुकदेव परीक्षित संवाद है इसमें

अमृत की इसमें धारा है।


जिन घरों में नित्य कथा हो

तीर्थ रूप हो जातें हैं

उस घर में जो रहते हैं उनके

पाप नष्ट हो जाते हैं।


किसी तीर्थ का फल इतना ना

जितना इस कथा का है

हजारों अशव्मेघों का फल

इसके सामने छोटा है।


अंत समय में कोई इसे सुनले

बैकुंठ धाम मिल जाये उसे

सुनने को मिले सिर्फ उसे ही

जन्मों का पुण्य प्रपात हो जिसे।


दिनों का कोई नियम नहीं है

अच्छा है रोज सुना जाये

पर कलयुग में कठिन है ये तो

सप्ताह की विधि वो बतलायें।


तप योग से फल न मिले जो

सप्ताह श्रवण से मिल जाये

शोनक जी पूछें सूत जी से ये

ऐसा कैसे ये बतलायें।


कहें सूत जी, कृष्ण जब अपने

परमधाम को जाने लगे

उद्धवजी कहें कलयुग आये अब

कृष्ण उनको समझाने लगे।


उद्धव कहें दुष्ट प्रकट हों

पृथ्वी तब किस शरण जाये

आप को छोड़ कोई दूजा न

जो इसकी रक्षा कर पाए।


ना जाईये पृथ्वी छोड़कर

भक्त रहेंगे कैसे वहां

प्रभु सोचें फिर भक्तों के लिए

कोई यत्न मैं करूँ यहाँ।


अपनी शक्ति फिर हरि ने

डाल दी सारी इस शास्त्र में

हो गए अंतर्ध्यान प्रभु तब

बस गए वो इसके रस में।


सनकादि बखान करें कथा

तभी वहां एक आश्चर्य हुआ

भक्ति, ज्ञान और वैराग्य

उन तीनों का वहां प्राकट्य हुआ।


कैसे ये प्रविष्ट हुई यहाँ

सुँदर भक्ति, मुनि सोचें सभी

सनकादि कहें भक्ति देवी

निकली कथा के अर्थ से अभी।


भक्ति सनकादि से बोली

कलयुग में मैं थी नष्ट हुई

कृपा से आपकी मैं फिर से अब

निर्मल और पुष्ट हुई।


सनकादि से पूछे भक्ति

आप बताएं जाऊं मैं कहाँ

विष्णुभक्तों के ह्रदय में विराजो

ना कलयुग का प्रभाव वहां।


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