श्रीमद्भागवत ५, धुंधकारी को प्रेतयोनि की प्राप्ति और उसका उद्धार
श्रीमद्भागवत ५, धुंधकारी को प्रेतयोनि की प्राप्ति और उसका उद्धार
पिता जब थे वन को चले गए
धुंधकारी दुखी करे माता को
पूछे धन कहाँ रखा है
उसको डांटे, पीटे, मारे वो।
दुखी होकर, कुएं में गिरकर
मृत्यु हुई उसकी माता की
गोकर्ण तीर्थ यात्रा पर चला गया
धुंधकारी को ना फ़िक्र किसी की।
पांच वैश्याओँ को ले आया घर
रहने लगा उनके साथ वो
क्रूर कर्म करे पूरा दिन और
चोरी करता था वो रात को।
एक दिन गहने मांगे वैश्या ने
चोरी कर गहने ले आये
स्त्रियां सोचें, करे रोज डकैती
एक दिन जरूर ये पकड़ा जाये।
राजा इसका सब धन छीन कर
मृत्यु दंड जरूर देगा उसे
धन की अपने रक्षा करने को
हम हीं क्यों ना मार डालें इसे।
रस्सिओं से था बांधा उसको
फांसी से भी नहीं मरा जब
मुख पर अंगारे थे डाले
छटपटा के मर गया था वो तब।
शरीर को दबा दिया गड्ढे में
कोई पूछे, कहें वो सारी
बाहर देश गया हुआ है
भाग गयीं ले सम्पति सारी।
धुंधकारी एक प्रेत बन गया
दशों दिशाओँ में भटकता
गोकर्ण को मरने का पता चला तो
गया में उसका श्राद्ध कर दिया।
गोकर्ण जी अपने नगर में
घूमते घूमते एक दिन आये
रात में जब वो सो रहे थे
धुंधकारी उनको डराए।
गोकर्ण सोचें कोई जीव जो
दुर्गति को प्रपात हो जैसे
पूछें उससे कौन हो तुम
और दशा हुई ये कैसे।
बार बार जब पूछें उससे
रोने लगा कहे, भाई तेरा
अपनी सारी कथा सुनाई
धुंधकारी नाम है मेरा।
गोकर्ण सोचें, पिंडदान किया
गया में विधि से मेने सारा
फिर भी इस योनि से न छूटा
उपाय क्या करूंअब दोबारा।
सुबह को मिलने लोग आ गए
गोकर्ण सारी कथा सुनाएं
सभी कहें, सूर्य नारायण ही
इस का अब उपाय बताएं।
सूर्य स्तुति की गोकर्ण ने
सूर्य कहें भागवत सप्ताह से
इसकी प्रेत की योनि छूटे
इसी शास्त्र की कथा से।
व्यास गद्दी पर बैठे गोकर्ण
भागवत की वहां कथा सुनाएं
वो प्रेत भी वहां आ गया
बाकी लोग भी सुनने आये।
सात गाँठ का बांस पड़ा था
उसी में घुस कर कथा सुने जहाँ
पहले दिन विश्राम हुआ जब
बड़ी विचित्र बात हुई वहां।
तड तड कर फिर फटी वहां पर
एक गाँठ उस बांस की जोर से
सात दिन में वो सारी फट गयीं
मुक्त हुआ वो प्रेत योनि से।
बारह स्कंध सुने थे उसने
धुंधकारी अब पवित्र हो गया
प्रेत योनि से मुक्ति मिली उसे
दिव्य शरीर उसने धारण किया।
तभी एक विमान था आया
चढ़ा धुंधकारी उसपर जब
पार्षद जो विमान के साथ थे
गोकर्ण उनसे पूछ रहे तब।
शुद्ध ह्रदय, सामान रूप से
कथा सुनी है सभी लोगों ने
विमान सिर्फ इसके लिए आया
फल में फिर भेद क्यों ये।
सेवक कहें कि भेद का कारण
श्रवण भेद है इन दोनों का
श्रवण इन लोगों ने भी किया
मनन इतना अच्छा न इनका।
सात दिन तक निराहार रहा
स्थिर चित से था मनन करे ये
जो ज्ञान दृढ न हो तो
वो ज्ञान व्यर्थ हो जाये।
ध्यान न देने से श्रवण का
भटकता चित हो, उस जाप का
और संदेह हो तो मन्त्र का
फल न मिलता इन तीनों का।
देश अगर वैष्णव ना हो
श्राद्ध का भोजन अपात्र पाए
अश्रोत्रिय का दान, आचारहीन कुल
इन सब का नाश हो जाये।
धुंधकारी को लेकर वो फिर
वैकुण्ठधाम अपने चले गए
श्रवण मास में फिर गोकर्ण जी
सप्ताह क्रम से कथा वहां करें।
समाप्ति पर आये विमान वहां
भगवान भी उनके साथ प्रकट हुए
गोकर्ण को ह्रदय से लगाकर
लेकर अपने धाम चले गए।
और भी वहां जो लोग थे सारे
विमानों पर उनको चढ़ाया
भागवत धाम चले गए वो
भक्ति का रस सबने पाया।
