शर्मीली मुस्कान
शर्मीली मुस्कान
बारात आयी , बाजा बजा
घर मे खुशियां मनी
और देखते देखते
दीदी के माथे पर उग आयी
सिंदूर की लक्ष्मण रेखा
बहुत प्यारी लगने लगी
दुल्हन के जोड़े में सिमटी दीदी
उससे भी प्यारी लगी
चंचल गुलाबी होठों पर उभरी
शर्मीली मुस्कान
अनजानी सी थी मेरे लिए
शर्मो हया में लिपटी मुस्कान
घूंघट में अभी नहीं घुसी थी
जीजा की लालायित आँखे
तभी कोलाहल हुआ
भगदड़ मच गयी
क्योंकि घर मे
आतंकवादी घुस आए थे
एक गोली चली
सनसनाती गुजर गयी
जीजा जी के सीने के पार
और छलनी हो गयी
घर की सारी खुशियाँ
मैं बेहोश हो गया
समझदार बनाया उम्र ने जबसे
गुस्सा है , नफरत है
रूढ़िवादी समाज की
नासमझ क्रूरता पर
नहीं लौटने देती
जो फिर से
निर्दोष दीदी के होठों पर
शर्मीली मुस्कान
चलो नयी शुरुआत करें
वापस लाने की
मासूम बहनो की खोयी
शर्मीली मुस्कान।