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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -४५ ;देवहूति के साथ कर्दम प्रजापति का विवाह

श्रीमद्भागवत -४५ ;देवहूति के साथ कर्दम प्रजापति का विवाह

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मनु के गुण वर्णन करें कर्दम जी 

मनु संकुचाकर कहें फिर उनसे 

आप सम्पन्न तप, विद्या, योग में 

प्रकट हुए ब्रह्मा जी के मुख से। 


आपके दर्शन मात्र से ही 

सारा संदेह मेरा दूर हो गया 

मैं बहुत ही भाग्यवान हूँ 

आप मुनि का मुझे दर्शन हुआ। 


ये खड़ी जो कन्या मेरी 

शील और गुण में ये उत्तम है 

अपने योग्य पति पाने की 

ये मन में इच्छा रखती है। 


जबसे नारद के मुख से इसने 

गुणों के बारे में सुना आपके 

तब से ये निश्चय कर चुकी 

आप को पति रूप में प्राप्त करे। 


कन्या समर्पित करूँ आपको 

स्वीकार कीजिये इसे, कृपा कर 

कर्दम जी बोले, चलो ठीक है 

पर सविकारूं एक शर्त पर। 


जब तक इसके संतान ना होगी 

तब तक इसके साथ रहूंगा 

उसके बाद गृहस्थ छोड़कर 

भजूँ हरि को, सन्यास मैं लूँगा। 


ये कह कर मुनि कर्दम जी 

मौन हो गए, प्रभु का ध्यान कर 

मनु देखें सहमति बेटी की 

चले वहां से, बेटी को दान कर। 


वर्हिष्मती नगरी में पहुंचे 

राजधानी जो थी तब उनकी 

वराह भगवन के रोम गिरे जहाँ 

ला रहे जब रसातल से पृथ्वी। 


वही रोम जो गिरे थे झड़कर 

कुश और कास हुए हरे भरे 

जिनके द्वारा मुनि यज्ञपुरुषों की 

करें पूजा और आराधना करें। 


मनु निरंतर लगे रहते थे 

हित के लिए सभी प्राणीओं के 

उन्होंने धर्मों का वर्णन किया 

मनुष्यों के तथा समस्त वर्णों के। 


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