अदृश्य पुरखे
अदृश्य पुरखे
हम जब भी कभी
थककर, हताश या टूटकर गिरते हैं
हमेशा किताबों की हथेलियों में ही गिरते हैं।
किताबें हमारे लिए अदृश्य पुरखे हैं
उनकी ममत्व की गोदी
हमारे लिए सबसे विश्वसनीय शरणस्थली है।
जिसमें अपने तमाम घावों और चोटों से आहत
हम बेतकल्लुफ़ी से रो सकते हैं
सिसकियां लेकर सो सकते हैं।
उनके शब्द हमेशा हमारे लिए
लोरी की तरह थपकियों में बदल जाते हैं
ताकी हम अटूट नींद में
अपने सपनों को फिर से जी सकें।
