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Puru Sharma

Abstract

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Puru Sharma

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लौटना चाहता हूँ

लौटना चाहता हूँ

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लौट जाना चाहता हूँ दोबारा

बचपन की उन संकरी सी तंग गलियों में

जिनमें सिमटा था जहां सारा

समेटना चाहता हूँ उस गली में बिखरे यादों के पत्तों को

और सुनना चाहता हूँ उन पत्तों की

खड़खड़ाहट का मधुर संगीत म हसूस करना चाहता हूँ दोबारा

उस गली में गूँजते पदचिन्हों की चाप,

देखना चाहता हूँ दोबारा उस बरगद पर

चिड़ियों का डेराजिसकी डालों पर झूलते बीता बचपन मेरा


जाना चाहता हूँ उस गली के अंतिम छोर तक

और पार करना चाहता हूँ दोबारा 

उस पुराने घर की मीठी दहलीज को

जिसे लाँघ कर गया था

कड़वाहटों की दुनिया में खोलना चाहता हूँ

सालों से बंद जर्जर किवाड़ अपने अंतर्मन के

जिनमें कैद हैं वक्त की मार से झुक चुके पंछी कई

खटखटाना चाहता हूँ बंद कमरे की खिड़की को

और ढूढ़ना चाहता हूँ दुबारा उन्ही चारदीवारों में खुद को

चढ़ना चाहता हूँ दोबारा उस छत की मुंडेरों पर 

जहाँ सूर्य सबसे पहले आकर अपनी आभा बिखेरता है


साफ करना चाहता हूँ एक-दूसरे से गुथे यादों के जालों को

और फँस जाना चाहता हूँ दोबारा अतीत के सुनहरे गीतों में

फटकारना चाहता हूँ सालों से जमी अतीत की गर्द को

और उखेड़ना चाहता हूँ पुरानी परतों को,

बातों को, यादों कोखो जाना चाहता हूँ इसी अतीत की सुनहरी गर्द में

और देखना चाहता हूँ शाम ढलते, रात की चाँदनी पिघलते

गली के उस कोने से जहाँ से नापा था आकाश पूरा

जहाँ से सीखा था जीवन जीना


हाँ मैं लौट जाना चाहता हूँ दोबारा उन्हीं गलियों में

जीना चाहता हूँ बचपन दोबारा।



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