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SANGRAM SALGAR

Abstract Classics Inspirational

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SANGRAM SALGAR

Abstract Classics Inspirational

वो दिन भी क्या दिन थे

वो दिन भी क्या दिन थे

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वो दिन भी क्या दिन थे

सैनिकी विद्यालय का होस्टल भी

अजब और गजब का था

ना किसी की सुनते थे

ना किसी को सुनाते थे

बस अपनी मर्जी से खूद की जिंदगी जिते थे।

पहले झगड़ा करते थे

फिर मुस्कुराकर नई शुरुवात करते थे

पर आज सिर्फ यादों को हि कहां करते है

वो दिन भी क्या दिन थे।

सब लोग अलग - अलग दुनिया से थे

जब चाहे सोते थे

जब चाहे हंगामा करते थे

पर सभी के फभी ऊसुलों के पक्के यार थे।

हॉस्टेल में नई - नई हरकते करते थे

मिस यू यार, फिर मिलेंगे

लिखकर दीवारों पर सब चले गये

हॉटेल मे रही सिर्फ हमारी यादें

आज वो यादें ही हमसे कहते हैं

वो दिन भी क्या दिन थे।


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