मुक्तक
मुक्तक


दर्द की स्याही डुबोकर क़लम से बात लिखता हूँ
यादों के झरोखों से मै कुुछ जज़्बात लिखता हूँ
कभी तुुम डूूूूब कर देखो मेरे आखों के सागर में
जो आंखें कह नही सकतीं वही मै बात लिखता हूँ।
दर्द की स्याही डुबोकर क़लम से बात लिखता हूँ
यादों के झरोखों से मै कुुछ जज़्बात लिखता हूँ
कभी तुुम डूूूूब कर देखो मेरे आखों के सागर में
जो आंखें कह नही सकतीं वही मै बात लिखता हूँ।