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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -३७;सृष्टि का विस्तार

श्रीमद्भागवत -३७;सृष्टि का विस्तार

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मैत्रेय जी बताएँ विदुर को, कैसे 

ब्रह्मा इस जगत की रचना करें 

सबसे पहले उन्होंने रचीं 

अज्ञान की पाँच वृतियाँ ।


अविद्या, मोह, महामोह, द्वेष 

और अभिनिवेश नाम हैं उनके 

पर इस पापमय सृष्टि को 

ब्रह्मा प्रसन्न नहीं हुए देखके ।


तब उन्होंने भगवान का ध्यान किया 

इस बार मुनि उत्पन्न किए 

सनक, सनंदन, सनातन 

सनत्तकुमार, चार मुनि ये ।


कहा उन्हें सृष्टि उत्पन्न करो 

पर वो ऐसा ना करना चाहें 

भगवान के ध्यान में सदा वो तत्पर 

अनुसरण करें मोक्ष का जनम से ।


ब्रह्मा देखें आज्ञा ना मानें 

आया उनपर क्रोध था उनको 

बहुत रोकना चाहें क्रोध को 

पर रोक पाए ना उसको ।


तत्काल प्रजापति की भोहों से 

नीले काले बालक के रूप में 

वो क्रोध प्रकट हो गया 

वो भव पूर्वज हैं देवताओं के ।


रो रो कर वो कहने लगे 

मेरा नाम, रहने का स्थान बताओ 

ब्रह्मा कहें फूट फूट कर रो रहे 

रुद्र नाम से जाने जाओ ।


रहने के लिए हैं तुम्हारे 

हृदय, इंद्रियाँ, आकाश, वायु,प्राण हैं 

अग्नि, जल, पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा 

और तप , ये ग्यारह स्थान हैं ।


अनेकों नाम होंगे तुम्हारे 

ग्यारह तुम्हारी पत्नी होंगी 

लोग कहें तुम्हें मनु, शिव आदि 

प्रजा उत्पन्न तुम्हें करनी होगी ।


रुद्र अपने ही तरह की 

प्रजा उत्पन्न तब करने लगे 

असंख्य रुद्र करें संसार का भक्षण 

तब ब्रह्मा ने रोक दिया उन्हें ।


कहा जाओ अब तुम तप करो 

रचना करना फिर उसके प्रभाव से 

ब्रह्मा जी की अनुमति लेकर 

रुद्र फिर वन को चले गए ।


ब्रह्मा ने दस पुत्र उत्पन्न किए 

लोकों की वृद्धि हुई थी जिससे 

मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलसत्य 

पुल्ह, क्रतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष थे ।


दसवें पुत्र नारद जी थे 

उत्पन्न हुए ब्रह्मा की गोद से 

दक्ष अंगूठे से, वशिष्ठ प्राण से 

भृगु त्वचा से, क्रतु हाथ से ।


पुलह नाभि से, पुलसत्य कानों से 

अंगिरा मुख से, अत्रि नेत्रों से 

और मरीचि जो प्रजापति थे 

वो उत्पन्न हुए थे कोख से ।


ब्रह्मा के दायें स्तन से 

धर्म तब उत्पन्न हुए थे 

जिनकी पत्नी मूर्ति से 

उत्पन्न हुए स्वयं नारायण थे ।


पीठ से ब्रह्मा की अधर्म उत्पन्न हुआ 

जिससे मृत्यु उत्पन्न हुआ था 

हृदय से वाम, भोहों से क्रोध 

नीचे के होंठ से लाभ हुआ था ।


लिंग से उनके समुंद्र प्रकट हुआ 

गुदा से प्रकट हुए निरऋत्ति

जो राक्षसों के अधिपति हैं 

छाया से उत्पन्न हुए कर्दम मुनि ।


मुख से ब्रह्मा के सरस्वती प्रकट हुईं 

बहुत सुकुमार और मनोहर थीं 

देख उसे मोहित हुए ब्रह्मा 

यद्यपि वो स्वयं वासना रहित थी ।


मरीचि आदि पुत्रों ने समझाया 

आपको पाप ये शोभा ना दे 

ऐसा ना किसी पूर्व ब्रह्मा ने किया 

और आगे भी कोई ना करे ।


सुनकर बहुत लज्जित हुए ब्रह्मा 

उसी समय शरीर छोड़ दिया 

उस शरीर को दिशाओं ने लिया 

वो शरीर फिर कुहरा हो गया ।


पहले सी सुंदर सृष्टि रचूँ 

एक बार ब्रह्मा जी सोचें 

उसी समय उनके मुखों से 

चार वेद प्रकट हो गए ।


इसके इलावा उनके मुखों से 

उपवेद भी उत्पन्न हुए थे 

धर्म के चारों चरण भी आए 

चारों आश्रम भी प्रकट हुए थे ।


पूर्व मुख से ऋक़ वेद और 

दक्षिण से यजुः उत्पन्न हुआ 

पस्चिम से साम वेद और 

उत्तर मुख से अथर्व वेद हुआ ।


आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद 

और स्थापत्यवेद भी हुए 

ये चारों उपवेद भी उनके 

उत्पन्न हुए उनके मुखों से ।


फिर उन्होंने इतिहास पुराण का 

पाँचवाँ वेद बनाया उन्होंने 

फिर धर्म के चार पद और 

बनाए आश्रम भी उन्होंने ।


विद्या, दान,तप और सत्य 

धर्म के पद ये चार हैं ।

ब्रह्मचारी, गृहस्थ,वानप्रस्थ, सन्यास 

ये सभी चारों आश्रम हैं।


उनके हृदय आकाश से ही 

ऊँ कार प्रकट हुआ था 

कामासक्त शरीर छोड़ा था पहले 

नया शरीर धारण किया था ।


देखा मरीचि आदि ऋषि से भी 

सृष्टि का विस्तार ना हुआ 

चिंता कर वो सोच रहे थे 

शायद ये सब देव की माया ।


विचार ऐसा कर रहे थे ब्रह्मा 

शरीर के उनके दो भाग हुए 

क ब्रह्मा जी का नाम है 

इसी लिए शरीर को काया हैं कहते ।


इन दोनों भागों से उनके 

स्त्री पुरुष का एक जोड़ा बन गया 

पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु था 

स्त्री का शतरूपा नाम हुआ ।


वो दोनो फिर मैथुन धर्म से 

प्रजा की वृद्धि करने लग गए 

उन्होंने फिर पैदा किए थे 

दो पुत्र, तीन कन्याएँ ।


दो पुत्र जो उनके नाम 

प्रियव्रत और उतानपाद थे 

आकृति, देवहूति और प्रसूति 

तीनों कन्याओं के नाम थे ।


आकृति का विवाह हुआ फिर 

प्रजापति रुचि के साथ में 

देवहूति का कर्दम मुनि से 

प्रसूति का हाथ दिया दक्ष के हाथ में ।


उन कन्याओं की संतानों से 

संसार सारा तब भर गया था 

इस तरह से ब्रह्मा जी ने 

सृष्टि का प्रारम्भ किया था ।



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