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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -२८ उद्धव जी द्वारा भगवानकी लीलाओं का वर्णन

श्रीमद्भागवत -२८ उद्धव जी द्वारा भगवानकी लीलाओं का वर्णन

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विदुर जी ने जब पूछा उनसे 

उद्धव जी तब स्मरण करें कृष्ण को 

ह्रदय उनका भर आया था 

उनका उत्तर ना दे सके वो। 


पांच वर्ष के जब उद्धव थे 

कृष्ण जी की मूर्ति बनाएं 

सेवा पूजा में तन्मय जब हो 

माँ के बुलाने पर भी ना आएं। 


अब तो वो वृद्ध हो गए 

स्मरण कर उनको वो व्याकुल हुए 

चित विरह अग्नि में जल रहा 

आँख से उनकी आंसू थें बहें। 


जब उनको फिर होश था आया 

कहने लगे वो विदुर जी से ये 

कृष्ण रूप सूर्य अब छिप गया 

घर हमारे श्री हीन हो गए। 


कृष्ण अब अंतर्ध्यान हो गए 

मानव लीला जब करते थे वो 

देखकर उसे इस जगत के 

सभी लोग मोहित जाते हो। 


युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ में 

नयनाभिराम रूप को देख कर 

मोहित हो गए सब वहां 

कृष्ण के उस स्वरुप को देख कर। 


प्रेमपूर्ण और हास्य विनोद भरी 

चितवन को देख गोपिआँ आएं 

घर का काम अधूरा छोड़कर 

कृष्ण ध्यान में वो खो जाएं। 


अजन्मे होकर भी वासुदेव के 

यहाँ जन्म की लीला करें वो 

सबको अभय दान वो देते पर 

कंस के डर से ब्रज गए वो। 


अत्यंत प्राक्रमी होने पर भी 

कालयवन के सामने से ही 

मथुरा छोड़ कर भाग गए वो 

और बहुत सी लीलाएं की थीं। 


याद करूं मैं वो लीलाएं 

चित बहुत बैचेन हो जाता 

हर पल उनका ध्यान है रहता 

व्यथित बहुत बेहाल हो जाता। 


शिशुपाल ने और महाभारत युद्ध में 

जिन्होंने थे वहां प्राण त्यागे 

कृष्ण दर्शन उन्होंने किया था 

परमपद को वो सब पा गए। 


स्तनों में विष लगा पूतना ने था 

कृष्ण को अपना दूध पिलाया 

मारने की नीयत थी उसकी 

उसने भी था परमपद पाया। 


कंस की कारागार में जब प्रभु 

देवकी से अवतार लिया था 

कंस के डर से वासुदेव ने 

नन्द के यहाँ पहुंचा दिया था। 


भाई बलराम के संग वहां पर 

ग्यारह वर्ष छिपकर रहे वो 

यमुना के उपवन में खेलें 

ग्वालों संग विहार करें वो। 


गोओं को थे वे चराते 

मन में आये, बांसुरी बजाएं 

कंस ने कितने राक्षस भेजे 

सभी को खेल में मार भगाएं। 


कलिआ नाग की विष से यमुना का 

पानी बहुत विषैला हुआ था 

कालियादहन करके उन्होंने 

ग्वालों को जीवित किया था। 


गोवर्धन पूजा कराइ 

ब्राह्मणों को धन था दिलाया 

जब इंद्र कुपित हुए तो 

गोवर्धन भी था उठाया। 


चंद्रमाँ की जब चांदनी छिटके 

मधुर गान करते थे वो तब 

गोपियों के संग नृत्य थे करते 

रास विहार करते थे फिर सब। 


मथुरा पधारे, कंस को मारा 

सांदीपनि मुनि से वेद अध्यन किया 

मरे हुए पुत्रों को उनके 

यमपुरी से लाकर दे दिया। 


रुक्मणि की इच्छा पर उन्होंने 

हरण किया, उससे विवाह किया 

सत्यभामा को प्रसन्न करने को 

स्वर्ग से कल्पवृक्ष उखाड लिया।


 भौमासुर राक्षस को मारा 

पुत्र भगदत्त को राज्य दिया 

राजकन्याएँ जो लाया हरकर 

उनको बंधन से मुक्त किया। 


कन्याओं ने कृष्ण को देखकर 

पतिरूप में वर्ण कर लिया 

योगमाया से अनेक रूप धरे 

सब का विधिवत पाणिग्रहण किया। 


कालयवन,जरासंघ, शालवादि ने 

मथुरा,द्वारिका को घेरा था जब 

निज जनों को अपनी शक्ति दे 

मरवा दिया उन तीनों को तब। 


महाभारत में पांडवों का पक्ष ले 

दुष्ट राजाओं को था मारा 

फिर सोचें कि कम करूं अब 

यादवों का दुसह बल सारा। 


एक बार यदुवंशी बालक 

मुनिश्वरों को चिढ़ा रहे थे 

इसमें भी कृष्ण की लीला ही थी 

यदुवंश नाश वो चाह रहे थे। 


प्रभाष क्षेत्र में गए यदुवंशी 

वरुणी मदिरा पी वहां पर 

दुर्वचन कहें एक दूजे से वो 

ज्ञान नष्ट हुआ मदिरा पीकर। 


मार काट होने लगी वहां 

भगवान विचित्र माया ये देखें 

मुझे बद्रिकाश्रम जाने को कह गए 

पर मैं चला गया उनके पीछे। 


आशय उनका मैं समझ गया था 

कि वो इस लोक से जाना चाहें 

पर मन व्यथित मेरा था,इसलिए 

पहुँच गया प्रभासक्षेत्र में। 


सरस्वती के तट पर कृष्ण थे 

अकेले बैठे मगन वो हो रहे 

भोजन, पानी सब त्यागा फिर भी 

आनंद से प्रफुल्लित हो रहे। 


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