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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -२३ सृष्टि वर्णन

श्रीमद्भागवत -२३ सृष्टि वर्णन

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नारद कहें ब्रह्मा से आप तो 

सृष्टि करता, सबके पिता हैं 

ज्ञान दीजिये और बताईये 

इस संसार के लक्षण क्या हैं। 


इसका क्या आधार है और 

किसने निर्माण किया इसका है 

किसके आधीन ये सारा है 

प्रलय किससे होता इसका है। 


जो कुछ हुआ या हो रहा है 

और जो कुछ आगे होगा अब 

आप ही तो इस सब के स्वामी 

आप जानते ही हैं ये सब। 


ये ज्ञान आप को मिला कहाँ से 

किसके आधार पर आप हैं ठहरे 

आप का भी स्वामी कौन है 

आप अपना स्वरुप वर्णन करें। 


अपनी सारी शक्ति से आप ही 

जीवों को उत्पन्न करें हैं 

मुझे तो ये शक हो रहा है 

कोई आपसे भी बड़े हैं। 


आप सर्वज्ञ सर्वेश्वर हैं 

ज्ञान से मुझको ये समझाओ 

ये सब प्रश्न हैं मेरे मन में 

इनका उत्तर मुझे बताओ। 


ब्रह्मा जी बोले, बेटा नारद 

मुझसे परे, तत्व भगवान हैं 

जब तक उस तत्व को जान न ले कोई 

लगता सब मेरा प्रभाव है। 


जैसे सूर्य, अग्नि, चन्द्रमाँ 

ग्रह नक्षत्र और तारे सारे 

उन्ही के प्रकाश से प्रकाशित होते 

उसी प्रकाश को वो फैला रहे। 


ऐसे ही उन्हीं भगवान के 

चिन्मय प्रकाश से प्रकाशित मैं हूँ 

और उसी प्रकाश से मैं फिर 

संसार को प्रकाशित कर रहा हूँ। 


भगवान से भिन्न कोई वस्तु नहीं 

देवता अंगों से कल्पित हुए 

वेद नारायण के परायण 

यज्ञ उनकी प्रसन्नता के लिए। 


उनके अनुसार मैं सृष्टि रचना करूं 

स्वामी सारे संसार के हैं वो 

वो ईश्वर हैं, निर्विकार हैं 

मेरे पूज्य, मेरे स्वामी वो। 


एक से बहुत होने की जब 

इच्छा हुई भगवान के मन में 

पंचभूत, इन्द्रियां, मन और तीनों गुण 

माया से मिल गए आपस में। 


पिंड और ब्रह्माण्ड की रचना हो गयी 

जल में वो रहा निर्जीव रूप में 

भगवान ने तब उसे जीवित कर दिया 

विराट रूप निकला उसमें से। 


वाणी अग्नि उसके मुख से उत्पन्न हुए 

अन्न और रस उसकी जीभा से 

नासिकाओं से प्राण और वायु 

अश्वनीकुमार घ्राणेन्द्रिय से। 


नेत्रेंद्रियाँ से तेज और सूर्य 

कानों से तीर्थ और दिशाएं 

आकाश और शब्द श्रोत्रेँद्रिय से 

त्वचा से यज्ञ, स्पर्श हैं आये। 


केश, दाढ़ ,मूछों से निकले 

मेघ, बिजली, और शिलायें 

भुजाओं से लोकपाल प्रकट हुए 

चरणकमलों से समस्त कामनाएं। 


लिंग से जल, वीर्य और सृष्टि 

गुदाद्वार से उत्पत्ति नर्क और मृत्यु की 

पीठ से पराजय, अधर्म और अज्ञान 

नाड़ियों से उत्पत्ति हुई नदियों की। 


हड़ीयों से पर्वत उत्पन्न हुए 

उदर में मूल प्रकृति, समुन्द्र हैं 

ह्रदय ही मन की जन्म भूमि है 

हम सब भी उनके अंदर हैं। 


सब लोक उनका एक अंश मात्र हैं। 

सारा विशव रहता है जहाँ 

इन्ही अंशमात्र लोकों में 

समस्त प्राणी निवास करते वहां। 


दो मार्ग बतलाये शास्त्रों ने 

कर्म मार्ग सकाम पुरुषों के लिए 

दूसरा विद्या मार्ग है जो 

वो निष्काम उपासकों के लिए। 


एक मार्ग से भोग प्राप्त हों 

दूसरा मार्ग है मोक्ष देता 

मनुष्य के लिए दोनों ही हैं 

एक का है वो आश्रय लेता। 


ब्रह्मा जी कहें फिर नारद जी से 

जिस समय मेरा जन्म हुआ 

विराट पुरुष के नाभि कमल से 

उस समय था मैं प्रकट हुआ। 


उसके अंगों के सिवा मिली ना 

वहां पर कोई यज्ञ सामग्री मुझे 

तब मैंने इकट्ठी की सामग्री 

उसी पुरुष के अंगों से। 


मैंने उस पुरुष का भजन किया 

प्रजापतिओं ने की आराधना 

समय समय पर मनु, ऋषिओं ने 

देवता, मनुष्यों ने की साधना। 


उनकी प्रेरणा से ही मैंने की 

इस सारे संसार की रचना 

रूद्र से कह वो संहार करें 

विष्णु बन करें संसार की रक्षा। 


हम सब हैं माया से मोहित 

उनकी माया ना कोई समझ सके 

ना उनका कोई अदि अंत है 

हम बस लीला का गान ही कर सकें। 


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