श्रीमद्भागवत -१५८; देवासुर संग्राम
श्रीमद्भागवत -१५८; देवासुर संग्राम
शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
अमृत की प्राप्ति नहीं हुई दैत्यों को
क्योंकि भगवान् से विमुख थे वे
हरि ने पिलाया उसे देवताओं को।
इसके बाद भगवान वहां से
चले गए अंतर्धान हो
सफलता मिली जो शत्रुओं को
दैत्य सह न सके थे उसको।
तुरंत अपने हथियार उठाये
धावा बोल दिया देवताओं पर
देवताओं को आश्रय था हरि का और
शक्ति आ गयी थी अमृत पीकर।
अस्त्र शस्त्र ले दैत्यों से भिड़ गए
हे परीक्षित, भयंकर संग्राम हुआ
क्षीर सागर के तट पर हुआ ये
देवासुर संग्राम से ये जाना गया।
अस्त्र शस्त्र से लड़ने लगे सब
बड़ा कोलाहल मच गया वहां
रथपर, पैदल, घोड़ों, हाथी पर
एक दूजे से लड़ रहीं सेना।
रणभूमि में दैत्यों के सेनापति
थे विरोचन पुत्र बलि जो
वैहायस विमान पर बैठे
ले जाता वो वहां, जहाँ इच्छा हो।
बनाया मय दानव ने विमान को
इतना आश्चर्मय ये था कि
कभी दिखाई दे जाता था
और अदृश्य हो जाता कभी।
दैत्यों के बड़े बड़े सेनापति
घेरे हुए थे राजा बलि को
अनेक बार इन सब असुरों ने
युद्ध में पराजित किया देवताओं को।
बड़े उत्साह से सिंहनाद करें वो
क्रोध आ गया था इंद्र को
वायु, अग्नि आदि को साथ ले
चले ऐरावत पर सवार हो।
आमने सामने खड़ीं दोनों सेना
युद्ध करने लगा बलि इंद्र से
स्वामी कार्तिकेय तारकासुर से
वरुण हेति से, मित्र प्रहेति से।
यमराज कालनाभ से,
विशवकर्मा मय से भिड़े
शंबरासुर त्वष्टा से भिड़ गए
सविता विरोचन से लड़ने लगा
और नमुचि अपराजित से।
अश्वनीकुमार वृषपर्वा से तथा
सूर्यदेव बलि के पुत्रों से
राहु के साथ चन्द्रमाँ भिड़े
वायु के साथ पुलोमा थे।
शुम्भ निशुम्भ पर झपटीं भद्रकाली
महिषासुर से भिड़े अग्नि देवता
वातापी और इल्वल से युद्ध हुआ
ब्रह्मा पुत्र मारीचि आदि का।
दुर्मर्ष की कामदेव से
महादेव जी जम्भासुर से
शुक्राचार्य जी बृहस्पति जी से
नरकासुर शनैशचर से लड़ने लगे।
निवातकवचों के साथ मरुद्गण
कालेयों के साथ वसुगण
विशेषदेवगण पोलोमों के साथ में
क्रोधावशों के साथ रुद्रगण।
इस तरह से द्वन्द युद्ध से
और सामूहिक आकर्मण करके
सिर काटते एक दुसरे का
शत्रु को मारते रणभूमि में।
घोड़े, हाथी और रथों के चलने से
प्रबल धूल उडी रणभूमि में
दिशा, आकाश और सूर्य को
ढक लिया था उस धूल ने।
खून की धारा से वहां पर
रणभूमि आप्लावित हो गयी
कटे हुए सिर सभी और पड़े
रणभूमि बड़ी भीषण दिख रही।
वाण छोड़े बलि ने इंद्र पर
काट दिया इंद्र ने सभी को
और भी जो शक्तिआं चलाईं
इंद्र ने काट दिया उन सबको।
बलि अंतर्धान हो गया
सृष्टि की उसने फिर आसुरी माया की
ऊपर एक पर्वत प्रकट हुआ
वृक्ष, शिलायें उससे गिरने लगीं।
देवताओं की सेना दबने लगी
बलि ने तब सृष्टि की आग की
जला देने लगी देवताओं को
प्रलय के समान वो अग्नि।
माया के प्रभाव से असुर छिपे रहें
प्रहार न कर सकें उनपर देवता
इन्द्रादि देवता जो वहां
उन्हें भी तब कुछ न सूझा।
भगवान् का ध्यान किया इंद्र ने
हरि वहां पर प्रकट हो गए
असुरों की माया विलीन हो गयी
परम पुरुष के आ जाने से।
कालनेमि दैत्य ने देखा
भगवान् आ गए हैं गरुड़ पर
उसने एक त्रिशूल चलाया
बड़े वेग से उनके ऊपर।
भगवान् ने उसे पकड़ लिया और
कालनेमि को मारा उसी से
माली, सुमाली दो बलवान दैत्यों के
सिर काटे हरि ने चक्र से।
तदनन्तर माल्यवान ने
प्रहार किया गरुड़ पर गदा से
उसका सिर भी अलग कर दिया
धड़ से भगवान् हरि ने।