STORYMIRROR

Alka Nigam

Romance Fantasy

3  

Alka Nigam

Romance Fantasy

शर्बत-ए-हुस्न

शर्बत-ए-हुस्न

1 min
234

कोई लाख कहे

के फ़क़त इक 

मिट्टी की देह हो तुम।

पर कोई मुझसे पूछे के 

मेरी नज़रों में

कौन हो तुम।


न जाने कैसा जादू है 

वज़ूद में तुम्हारे।

हर वक़्त गला रहता है तर,

शर्बत-ए-हुस्न में तुम्हारे।


कभी ओस में भीगी 

सुनहरी सी गिन्नी सा 

लगता है चेहरा तुम्हारा।

कभी चाँदनी के 

ताने बाने से बुना

कोई ख़याल सी लगती हो तुम।


मोगरे को महकती डाल से फ़िसल

खिड़की के सहारे जो 

मेरे कमरे में पसर जाता है

वो महकता चाँद हो तुम।


तुम्हारे ख़्याल को बोने पे

जो सुर्ख़ बदन खिले,

वो गुलाब हो तुम।


जिसको बनाने के ख़ातिर, 

खुद रब ने भी 

मोहब्बत फ़रमाई होगी,

वो मुजस्समा-ए-इश्क़

लगती हो तुम।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance