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Mr. Akabar Pinjari

Tragedy

5.0  

Mr. Akabar Pinjari

Tragedy

श्राद्ध

श्राद्ध

2 mins
282


आओ यहां श्राद्ध किया जाता है श्राद्ध किया जाता है

यहां कौओं को खिला कर श्राद्ध किया जाता है,

और जिंदों को जलाकर खाक किया जाता है,

यहां लावारिसों को वारिस नहीं मिलते हैं,

और वारिसों को अदालत में दर-बदर घुमाया जाता है। 


ये गफ़लत का ज़माना है, यहां श्राध्द फ्री में किया जाता है,

यतीमखानों में लाचारों का मजमा सजाया जाता है,

तसल्ली भरी कहीं जाती हैं हजारों बातें वहां,

लेकिन जड़ से ये रोग बेबसी का, कहां मिटाया जाता है। 


आधुनिकता का नकाब पहनकर, हम बुनियादी चीजें भूल रहे हैं,

असलियत को छोड़कर, न जाने किसके पीछे दौड़ रहे हैं,

अरमानों का दामन तोड़कर अंदाज़-ए-जीना छोड़ रहे हैं,

जीते जी साथ, वक्त ना गंवाया जिनसे और 

आज कौओं को बुलाकर अपना सर फोड़ रहे हैं। 

  

घुट-घुटकर हर वक्त, निकलते हैं आंसू उनके, वर्षा के रूप में,

और हम यहां, दिलों की धड़कनें खो रहे हैं।

भटक रही हैं रूहें उनकी, अंधेरी गलियारों में,

और हम यहां,इत्मीनान की नींद सो रहे हैं।


जीते जी दो लफ़्ज प्यार के, जिनसे ना किए हमने कभी,

थोड़ी सी क्या आई आफ़त हम पर, याद में खून के आंसू रो रहे हैं। 

वह कोनों से खांसने की आवाज़, आज भी याद आती है,

वह मुझ को देखकर उनका रोना, वह बातें दिल में कहीं सताती है। 


झल्ला पड़ती थी बहूएं और वह पलकों को भिगोकर, चुप हो जाया करती थी,

वह मां मेरे ख्यालों में खोई, नमाज़ों में ही भूखी सो जाया करती थी।

वो मासूम मेरी बलाए वह अपने सर लगाया करती थी,

कुछ मांगने से पहले ही, वह चुप हो जाया करती थी।


खामोशी में भी वह मुझसे, न जाने क्या कह जाया करती थी,

जब समझा, मैं उसकी बातें, तब परलोक में रोया करती थी। 

वह बाप का प्यार निराला था, हर पल समझाने वाला था,

उनका हर ख़्वाब मेरा नसीब सजाने वाला था,

और मुझे कहां पता ? बुढ़ापा उनका मेरे घर नहीं जाने वाला था। 


वह ऐनक टूटा, घुंघराले बाल, पता चले ना, बेटे को उनके ये हाल,

जब आई मेरी बारी, तब पता चला क्या थी बीमारी,

रोम-रोम वह दर्द सहते थे, पर हर घड़ी वो हंसते रहते थे,

यतीमखाने में वे झुठ कहते थे, बच्चे तो मेरे बड़े अच्छे रहते थे। 


यह कैसी मोहब्बत है,यह कैसी इबादत है,

अपनों से टूटे रिश्ते और गैरों की सोहबत है,

जो दर्द सहेगा हरदम, वह बाप की फितरत है,

वह कहते थे हरदम, ये उनकी इबरत है, ये उनकी गुरबत (विवशता) है।


आज सताती हैं यादें उनकी,जब रुलाती हैं औलादें जिनकी,

याद आता है, अब वह अंजाम

खस्ताहालत से, रो पड़ता है अब दिल तमाम। 

आओ यहां श्राद्ध किया जाता है श्राद्ध किया जाता है,

पशु-पक्षियों को खिलाकर आवाज़ लगाया जाता है। 


पंडित पुरोहितों का हवन सजाया जाता है,

अपनों के हिस्सों का, गैरों को चटाया जाता है। 

माफ़ करो मुझे प्यारों, अब सिर्फ बेबसी से

श्राद्ध किया जाता है, श्राद्ध किया जाता है।


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