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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

शराबी

शराबी

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शराबी कभी झूठ नहीं बोलता है

जब जाम लिये वो नशे में डोलता है

झूठ तो आदमी कोर्ट में बोलता है

गीता, कुरान हाथ में लेकर बोलता है

बेचारी शराब तो यूँ ही बदनाम है

चोर और डकैत तो हम इंसान है

शराबी नशे में हकीकत बोलता है

झूठ तो होश वाला शख़्स बोलता है

शराबी कभी झूठ नहीं बोलता है

नशे में वाकई वो सच बोलता है

शराब तो साखी यूँ ही बदनाम है

झूठे लोग तो हमसब इंसान है

शराबी तो ईमानदारी से बोलता है

शराब से तो आदमी गम भूलता है

जब तक हम उसमें है, ठीक है

उसके हम होने पे जहर घोलती है

अति नशा हमारी सांसे तोड़ता है

सीमित नशा ही सच खोलता है



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