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Satish Shekhar Srivastava

Classics

4  

Satish Shekhar Srivastava

Classics

शीतल नयन से

शीतल नयन से

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घिर आये गगन में शीत के काले-काले बादल

झनझोड़े खाते समीरण में लहर शरद को फैलाते

सरसिका के कँवल हृदय को इठलाते देखा


धीरे से कानों में कह रही प्रभात मधुर-मधुर

जूही चम्पा गुलाब मदमाते सौरभ-सुवास सर्दी में 

झूमते नाचते अठखेली करते इसमें घनप्रिय मयूर


पीपल बरगद नीम आम को भी ठिठुरते देखा

हृदय के मर्म को समझने के लिये हमने

मृतिका गर्द की नरम-नरम बिछावन को देखा


शून्यहीन हो खंड-खंड टूटते शिलाखंडों को

करुण आर्त स्वर में रोते सिसकते देखा

घर-घर जलते दाहक अंगारों का दंगल देखा


खेत खलिहानों मे किसानों का संकुल देखा

पहलवानी करते लड़कों को अखाड़े में देखा

सर्दी की इस ठिठुरन में गीत गोविन्द के तानों संग

बारहमासी सोहर गाते महिलाओं के दलों को देखा। 


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