ये बता जाए कोई
ये बता जाए कोई
जीना क्यूं है और किसके लिए
ऐसे ही अगर जीना हो तो फिर
सिर्फ़ जिंदा ही रहना है तो फिर
कैसी है ये जिंदगी क्यूं है ये जिंदगी
ये बता जाए कोई... ये बता जाए कोई
कभी मन नहीं करता सांस भी लेने का
ना किसी को देखने का ना बात करने का
ना व्यथा कोई न ही कोई कष्ट है लेकिन
फिर भी मौज से जीने का मन नहीं करता
कैसे मन को मनाएं.. ये बता जाए कोई...
सिर्फ रोशनी चले जाने से अंधेरा नहीं होता
आंखें बंद करने पर भी कुछ दिखायी नहीं देता
हर फिक्र माथे की सलवटों में गहरी होती गईं
खुशी के पलों से भी ये कमबख्त सीधी नहीं हुईं
फिक्र कैसे कम हो...ये बता जाए कोई....
खुल के जी तो लें मगर जीने में सुकून तो हो
दिन का कारखाना चल के शाम को खत्म तो हो
मशीन से चल रहे हैं सेकंड की सुई से घूम रहे हैं
इस दौड़धूप के बाद चैन की सांझ नसीब तो हो
चैन की सांझ कहां से लाए....ये बता जाए कोई..
बड़ी बड़ी बातें ,आदर्श सुनने में सुखद लगते हैं
कदम बाहर पड़ते ही लोग व्यापारी लगने लगते हैं
अपनी कहानी पे रोने वालों को भी दाम देने पड़ते हैं
इस व्यापार को कैसे समझें हम तो अनाड़ी लगते हैं
अब होशियारी कहां से लाएं.... ये बता जाए कोई...
जीना क्यूं है और किसके लिए
ऐसे ही अगर जीना हो तो फिर
सिर्फ़ जिंदा ही रहना है तो फिर
कैसी है ये जिंदगी क्यूं है ये जिंदगी
ये बता जाए कोई... ये बता जाए कोई।
