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Meenakshi Suryavanshi

Classics

4  

Meenakshi Suryavanshi

Classics

दिया तले अंधेरा

दिया तले अंधेरा

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कहो कैसे करूं 

मैं जग उजाला 

जब खुद को ही ना 

मिला समृद्धि का सवेरा 

अब तलक भवन बनाते 

उम्र बीत गई


पर न बना खुद का डेरा 

उम्र गुजर बीत गई

अब क्या बताऊं 

क्या तेरा क्या मेरा 

क्यों ना मान लिया

पहले ही होता 

दिया तले अंधेरा................


फसल बोई खेत सिचां

जागा पूरी रात 

हर त्यौहार भूल गए

फिर भी मिली क्या सौगात 

परिवार छोड़ भूखा रहूं

पसीने से तरबतर 


कभी धूप तो ठंड सहूं 

उम्र बीत गई 

ना सोया जो पूरी रात 

आत्महत्या कर रहा हूं

नजर ना आए 

खुशी का डेरा 

क्या कहूं किससे कहूं 

जब होता 

दिया तले अंधेरा..............


घर छोड़ा बिसरी जवानी 

डटा रहा जो सीमा पार 

न मनाई घर में होली दिवाली 

तकलीफ भी सही अपार 

ना मिल पाई मां की अर्थी 

ना बीवी से आंखें चार 

फर्ज समझा भेजा था


मां क्यों किया इतना लाचार 

जिन की रक्षा कर रहा हूं

पसंद ना आया उनका व्यवहार 

मर रहे हमारे फौजी 

वह लगाए समझौते का पहरा 

जो बोल पड़े तो हूं बुरा 

क्यों ना जान पाया 

जब होता 

दीए तले अंधेरा.............


विश्व शांति की बात करें

हम निज घर में नहीं है शोर

ढेरों खुशियां जो खुद चेहरे और 

नमस्कार से अब नहीं होती भोर 

गलियां सूनी बंद दरवाजे

क्या रात और क्या सवेरा 

ना जाने कैसे भूल गए

हां होता है

दिया तले अंधेरा................


अब तो माने घर करे रोशन 

छोड़ जगत की आस

शरबत भला क्या काम आए

पानी बुझाए जो प्यास 

होली दिवाली संग मनाए


थोड़े सीखे संस्कार 

विश्वशांति खुद आ जाएगी 

जो बदले निज व्यवहार

कमी ना हो उनको 

जिन्होंने ने डाल रखा

सीमाओं पर डेरा 


पेट भरा है जिनके कारण 

और सुरक्षित रात संग सवेरा 

अब उनका उत्साह बढ़ाया

खुले दिल से उन्हें अपनाए 

खुश हो किसान और जवान 

न करें कोई अब आत्महत्या 

खुश रहे सबका मन...............


लेकिन जानती हूं मैं 

न बदलेगा व्यवहार तेरा 

जाने क्यों यह भूल गई मैं 

जब होता है

दिया तले अंधेरा..................


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