अधूरी ख्वाहिशें…जीने की राह
अधूरी ख्वाहिशें…जीने की राह
मानव जीवन मिला
खुश हुए सब …
मेरे कर्म थे अच्छे शायद
तुम ने इतना बड़ा उपकार किया
तेरे इस एहसान का मोल कोई चुका ना पाया कभी …
हाँ जिस ने भी सच्चे मन से
समझी इसकी क़ीमत
वो चल पड़ा बस उस राह पे
जो तेरे द्वार पे जा पहुँची
जिस ने उसका जीवन सफल बनाया
सीधी है या टेढ़ी मेढ़ी है राह
तेरे मेहरबानी का ये मानव जीवन
तेरी शरण में फिर आ जाऊँ
फिर अपने कर्मों को
पूरी तरह निभा जाऊँ …
तुझे पा लेने की चाहत में
हर ख्वाहिश ले के जीती हूँ
अपने कर्म के पिटारे को यूँ
दिन रात संजोती हूँ …
खूबसूरत है ये तेरी दुनिया
दिल भी दिया तूने ही …
तो ख़्वाहिशओ का ख़ज़ाना भी दिया तेरा ही है …
मैं एक छोटी सी रचना ..यशवी तेरी हूँ …
कुछ पूरी हुई कुछ अधूरी ख़वाहिशे इसीलिए हैं …
की कर्म जो तूने जो सौंपें मुझे
समझ गई मैं …वो अभी अधूरे हैं
तब तब …जब पूरी ना हुई मुराद कोई मेरी …
बस इतना सा जाना और माना है
की लाखों हैं तेरी शरण में
मेरी अभी बारी नहीं आयी
मेरा अभी यहीं ठिकाना है
शायद उसने यही समझाया है
अधूरी हैं ख्वाहिशें उनकी …
जिन्होंने कर्म करने से दिल चुराया है
अनजान हैं अपने कर्मों से …
कर्म करोगे तो ही फल मिलेगा ..
अधूरी इच्छाओ का सबब मिलेगा
वो ऊपर बैठा बड़ा दयावान है
पर कर्मों के साथ कोई भी समझौता नहीं ..
हाँ ये उसका ईमान है..
अधूरी है ख्वाहिशें
तो अधूरे कर्मों की पहचान है
कर्म करते चलो ..जीने की राह का यही संकेत है …।
