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RAMJANAM PRASAD SINHA

Classics

4  

RAMJANAM PRASAD SINHA

Classics

नारी शक्ति

नारी शक्ति

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घरवार छोड़, मैं बाहर आऊँ,

मुश्किल पथ से मैं जाऊँ।

शक्ति मुझमें इतनी हो कि,

फिर से मैं शक्ति (दुर्गा) बन जाऊँ। 


घरवार छोड़ मैं, बाहर आऊँ,

मुक्तिपथ पर मैं बढ पाऊँ।

होकर स्वतंत्र मैं निर्भिकता से,

जो भी चाहुँ मैं कर पाऊँ।


मैं रहूँ न अबला पतित कभी,

शक्ति से सबला बन जाऊँ।

निज की शक्ति के उद्यम से,

सफल हो सक्षम बन जाऊँ।


शस्त्र नहीं मुझे शास्त्र चाहिए, 

कौशल में विश्वास चाहिए। 

सुपथ सदा एकला चलुँ मैं ,

हिम्मत और सुमति चाहिए। 


मुफ्त नहीं करता है मुक्त,

मुझे मुफ्त कुछ नहीं चाहिए। 

मिहनत का फल मीठा होता है,

मिहनत करने की शक्ति चाहिए। 


सरस सरिता सा बहता जाऊँ,

फुलवारी सा सौरभ फैलाऊँ।

बस चाह हमारी है इतनी,

मिहनत से मैं गौरव पाऊँ।


महकुँ मैं खुद के सुवास से,

मेहनत से आदर पाऊँ।

मंगनी की मांग नहीं करती, 

स्वयं से सशक्त मैं बन जाऊँ।


मुझे शक्ति का दान नहीं,

मुक्ति का वरदान चाहिए। 

निर्भीक स्वच्छंद पथ पर जाऊँ,

पथ पर रोशनदान चाहिए। 


किसलय कोमल गृह सौरभ का,

मंजूषा नहीं, उषा कहलाऊँ।

बनकर स्वावलंबी जीवन में,

स्वयं का सेवक मैं हो पाऊँ।


मुझे अजर-अमर होने की शक्ति

विषपान सहन का सौर्य चाहिए। 

ममता की मूर्ति की मान्यता नही,

मुझको सूरज का ओज चाहिए। 


मुझ पर दया नहीं बरबस बरसायें,

देवी हूँ शक्ति की शक्ति चाहिए। 

उन्मुक्त रहूँ आजीवन मैं,

मुझे शक्ति सृजक सम्मान चाहिए। 


मैं सशक्त बनूँ इतना,

कि शक्ति से संवाद करूँ।

सहन करूँ मैं इतना,

कि शक्ति का सामर्थ्य बनूँ।


नर-नारी का भेद मिटे अब,

हो समान सम्मान द्वि का।

आदर हो सत्कार सभी का,

भेद पले नहीं अनबन का।


हक से हूँ मैं हकदार बराबर का।

बर्बरता का नहीं व्यवहार चाहिए।

सम विसम का भेद न किंचित, 

मुझे तो अपना अधिकार चाहिए। 


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