गणेश जी
गणेश जी
गणेश जी की लीलाओं का क्या किया जाए बखान।
शिवजी और पार्वती जी की ये तो हैं दूसरी संतान।
बाल्य अवस्था से ही थोड़ा चंचल है इनका मन।
भोजन के लिए लालायित, भारी है इनका तन।
मोदक तो इनके अतिप्रिय हैं, इन्हें भोग अवश्य लगे।
जिसने मोदक का भोग लगाया, उसका भाग्य जगे।
गणेश बड़े भ्राता श्री कार्तिकेय से बहुत स्नेह करते हैं।
छोटे से मूषक पर सवार हो तीनों लोक घूमा करते हैं।
मां पार्वती जी की आज्ञा के पालन हेतु सदैव तत्पर।
माता के आदेश को सर्वथा रहते प्राथमिकता मानकर।
स्नान हेतु गईं माता के निर्देश पर ही डटे रहे स्थान पर।
शिव मिलने आए माता से, अडिग रहे अपनी बात पर।
द्वार से न हटे तो अपमानित शिवजी को क्रोध आया।
शिवजी से युद्ध करने को तैयार, न एक क्षण गंवाया।
क्रोध से भड़के शंकर जी ने इन पर ऐसा वार चलाया।
गर्दन इनकी धड़ से अलग, बालक का रक्त भी बहाया।
जब पार्वती जी स्नान से आईं तो किया बहुत विलाप।
सत्य बताकर कराया पिता शिव और पुत्र का मिलाप।
सत्य जानकर शिवजी हुए अत्यंत दुखी और अचंभित।
नेत्रों से अश्रु बहे, पीड़ा से भरे, संतान से हो गए वंचित।
शोकाकुल पार्वती जी से श्रापित होने की आई स्थिति।
तब शिवजी ने उपाय बताया संभाली विकट परिस्थिति।
किसी पशु का सर लाकर जोड़ा जाए गणेश की देह से।
जो भी पशु सो रहा हो, दूर होकर अपनी मां के नेह से।
सारे गण जाकर ले आए, एक गज के सर को उठाकर।
फिर उसको रख दिया अपने गणेश की देह से सटाकर।
शिव जी ने फूंक दिए प्राण, धरती पर पड़ी उस देह में।
नया रूप धर कर वापस आए, भर गए सबके स्नेह में।
शिव ने गले लगाया पुत्र गणेश को, पुत्र ने प्रणाम किया।
शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें प्रथम पूज्य का वरदान दिया।
दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि से इन्होंने विवाह रचाया।
पुकारे जाते हैं अपनी मौसी लक्ष्मी संग, है इनकी माया।
गणेश की प्रत्येक शुभ कार्य में सर्वप्रथम होती अर्चना।
जिससे हर कार्य सफल हो और आए कोई संकट ना।
लक्ष्मी जी के साथ शुभ लाभ के लिए पूजा इनको जाए।
मंगल हो सबका, सबकी हर मंगलकामना पूरी हो जाए।
