नयी नवेली दुल्हन
नयी नवेली दुल्हन
शादी के जोड़े में बड़े नाज़-नखरे से,
सज-धज के,माँ का आँचल छोड़ के
सात फेरों से सात जन्मों के बंधन में बंधन के
सारे रिश्ते-नाते और रीति - रीवाज़ों को त्याग के
जब चली वो नयी नवेली नव-विवाहित दुल्हन पिया की गली,
मुख पर मंद मुस्कान विद्यमान थी यूँ तो,
पर फूट फूट के मन ही मन घबरायी और रोयी बहुत थी वो
दिल के अब दो टुकड़े हों चुके थे,
एक मायके में ही रह गया था
तो दूजा पिया के घर संग उसके चल दिया था।
पर आशा की एक लौ प्रज्ज्वल्लित थी ह्रदय के प्रांगण में,
कि साथ मिलेगा जीवनसाथी का जो सपनों के रूप में बसा था अब तक अंतर्मन में।
जिससे कह सकेगी हर वेदना,सुना सकेगी मन की पीड़ा का वृतांत,
खुशियाँ हों जायेगी दुगनी और गम आधा पाकर जिसका साथ।
आगाज़ होगा दुनिया के विस्तार का,जब अवतरित होगा उन दोनों का एक नन्हा अंश,
छोड़ के आयी थी जिस ममतामयी छात्रछाया को वो,
आएगी बारी उसके पुनरनिर्माण की जहाँ खेलेगा और खिलखिलायेगा उसका वंश।
जिसके माध्यम से अधूरे सपने होंगे साकार और बचपन लौट आएगा फिर एक बार,
जिसका होना करेगा उसके दाम्पत्य जीवन को वास्तव में साकार।
आशा की लौ फिर से जगमगाते हुए ध्येय जीवन को प्रदान कर जायेगी
और सुख समृद्धि सम्पूर्ण जीवन में भर जायेगी,
जिसके लिए माँ का आँचल छोड़ के थी चली वो नयी नवेली दुल्हन अपने पिया की गली,
कुछ इस अद्भुत अंदाज़ में ज़िन्दगी उसके द्वारे मुस्काएगी और लहलहायेगी।।