वीर शुभ्रक
वीर शुभ्रक
धन्य है भारत भूमि, तुम कर्मभूमि,
तुम धर्मभूमि,हम सबकी तुम हो पुण्य भूमि,
जहाँ मानव क्या अश्व भी योद्धा बन जाते हैं,
कुचल कर दुश्मनों के सीने को, यमराज भी बन जाते हैं,
ऐसी ही एक कहानी है,
इतिहास में गुमनामी है,
पर इतिहास में फाड़े गये उन पन्नों को,
जोड़ने का बीड़ा उठाते हैं हम
ऐसे ही वीर शुभ्रक की कहानी सुनाते हैं हम,
मोहम्मद गोरी का था गुलाम,
नाम था उसका कुतुबुद्ददीन ऐबक
गोरी की मौत के बाद सम्भाला सिंहासन लाहौर का,
लूटने के लिए आक्रमण किया था मेवाड़ पर,
दुर्भाग्यवश युद्ध में बंदी बनाकर राजा कर्ण सिंह
और उनके प्रिय अश्व शुभ्रक को लाया गया लाहौर तब,
शुभ्रक भा गया था लुटेरे ऐबक को,
यातनाओं से तंग आकर
अवसर पाकर, कर्ण सिंह ने, कैद से भागने का किया प्रयास,
पर असफल रहा उनका यह प्रयास,
क्रुद्ध गुलाम ने सर कलम करने का दिया आदेश,
था चौगान का शौकीन गुलाम,
फरमान सुनाया, कर्ण सिंह के कटे सिर से खेलेगा वो गुलाम,
कैदी बनाकर जब जन्नत बाग उनको लाया गया,
सवार होकर शुभ्रक पर वो गुलाम भी पहुंच गया,
जंजीरों से जकड़े ,अपने बेबस स्वामी को,
देखकर रह न पाया शुभ्रक भी,
बह गई अश्रु धारा उसकी भी,
सर कलम करने के लिए खोला गया जंजीरों को जब,
वीर शुभ्रक की पटकी से गिरा वह गुलाम तब,
इतने वार किये शुभ्रक ने उसकी छाती पर,
तोड़ दिया दम उस गुलाम ने वहीं पर,
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई है उस महान अश्व और उसकी स्वामी भक्ति की
सरपट कर्ण सिंह को लेकर दौड़ा, कूच किया मेवाड़ की ओर
कहीं प्राण राजा के संकट में न पड़ जाएं, पीछा करने वालों से,
बिना रुके, विश्राम बिना दौड़ता ही रहा वह,
मेवाड़ बन गई थी मंजिल उसकी,
रात दिन वायु वेग से दौड़ा, पहुंच गया सुरक्षित मेवाड़ तक,
ज्यों ही कर्ण सिंह ने हाथ फेरा अपने स्वामी भक्त शुभ्रक पर,
वो मूर्ति बन गया था, निष्प्राण हो गया था
देकर बलिदान अपना, इतिहास बन गया था,
पर ऐसे इतिहास पर भी, अभिमान हम ना कर पाये
क्योंकि इतिहास लिपिबद्ध करने का कार्य दिया था उन्हीं गुलामों को,
खण्ड खण्ड करके मिटा दिया वीरों की वीर गाथा को,
न होगी कोई माफी इतिहास बदलने वालों की,
होंगे बेदखल अब वो इतिहास से हमारे,
मिटाया जिन्होंने इतिहास को हमारे !
